Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 57
________________ 13 कल रात मौसी यह समाचार सुनाकर गयी - “सन्मति महामुनि कौशाम्बी के वन में पधारे हैं। जिस दिन भी आहार के लिए निकलते हैं, निराहार लौट जाते हैं । उनकी विधि कहीं भी मिलती नहीं है ।" के आगमन का वृत्त जानकर विकल हो उठीप्रभु मैं 'मेरे आराध्य पधारे हैं ? इसी नगरी में विचरण कर रहे हैं ? कितनी भाग्यवती हूँ मैं । श्रीचरण इस कारा तक आ नहीं सकते, बन्दिनी उन तक जा नहीं सकती । कैसी अभागिनी हूँ मैं। कैसा विचित्र है मेरा प्रारब्ध ? मैं अधीर हो उठी दीदी ! क्या इतने निकट आकर भी वे इतने दूर बने रहेंगे ? क्या अभी भी दर्शन नहीं कर पाऊँगी अपने वर्धमान का ? उपवास का व्रत तो लिया नहीं, - फिर इस प्रकार प्रतिदिन निराहार क्यों लौट जाते हैं ? कौन-सी कठिन विधि अंगीकार कर ली है प्रभु ने ? कहाँ मिलेगा उस विधि का संयोग ? किसे मिलेगा उन्हें आहार देने का अवसर ? कौन होगा वह भाग्यशाली ?" 56 :: चन्दना मैं महावीर के चिन्तन में डूब गयी । मेरी चेतना में किसी अन्य विचार का प्रवेश सम्भव नहीं रहा । निद्रा भी हर बार दूर से ही लौट जाती । 'इस समय कहाँ विराजते होंगे मेरे नाथ ? किस चिन्तन में लीन होंगे ?

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