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कल रात मौसी यह समाचार सुनाकर गयी
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“सन्मति महामुनि कौशाम्बी के वन में पधारे हैं। जिस दिन भी आहार के लिए निकलते हैं, निराहार लौट जाते हैं । उनकी विधि कहीं भी मिलती नहीं है ।" के आगमन का वृत्त जानकर विकल हो उठीप्रभु
मैं
'मेरे आराध्य पधारे हैं ?
इसी नगरी में विचरण कर रहे हैं ? कितनी भाग्यवती हूँ मैं ।
श्रीचरण इस कारा तक आ नहीं सकते, बन्दिनी उन तक जा नहीं सकती । कैसी अभागिनी हूँ मैं।
कैसा विचित्र है मेरा प्रारब्ध ?
मैं अधीर हो उठी दीदी !
क्या इतने निकट आकर भी वे इतने दूर बने रहेंगे ? क्या अभी भी दर्शन नहीं कर पाऊँगी अपने वर्धमान का ? उपवास का व्रत तो लिया नहीं,
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फिर इस प्रकार प्रतिदिन निराहार क्यों लौट जाते हैं ? कौन-सी कठिन विधि अंगीकार कर ली है प्रभु ने ? कहाँ मिलेगा उस विधि का संयोग ?
किसे मिलेगा उन्हें आहार देने का अवसर ?
कौन होगा वह भाग्यशाली ?"
56 :: चन्दना
मैं महावीर के चिन्तन में डूब गयी ।
मेरी चेतना में किसी अन्य विचार का प्रवेश सम्भव नहीं रहा ।
निद्रा भी हर बार दूर से ही लौट जाती ।
'इस समय कहाँ विराजते होंगे मेरे नाथ ? किस चिन्तन में लीन होंगे ?