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बन्दीगृह के दिन कष्टप्रद भले ही रहे परन्तु वहाँ शान्ति थी। मैंने अनुभव किया कि मनुष्य को आत्म-निरीक्षण के लिए तपोवन के अतिरिक्त यदि कोई स्थान उपयुक्त हो सकता है तो वह बन्दीगृह हो सकता है।
अपने आपको बाह्य जगत के परिदृश्य से काटकर अन्तर्मुखी चिन्तन के लिए, और अपने स्व के साक्षात्कार के लिए, जैसा निर्विघ्न एकान्त चाहिए, भद्रा सेठानी के तलघर का वातावरण वैसा ही था। ____ मेरे लिए स्वामिनी का दिया दण्ड अभिशाप के स्थान पर वरदान सिद्ध हुआ। वहाँ बैठकर प्रतिदिन बार-बार अनुप्रेक्षाओं का चिन्तवन हुआ। इससे मन के सारे भ्रम टूट गये, सारी दुविधाएँ जाती रहीं।
तीन जनम लेकर जितना भोगा जा सकता है, उतना सब तीन दिन में भोगकर मैं उस भवन में गयी थी। उन सारे कटु अनुभवों ने मुझे लोक-भावना पर विचार करने के अनेक आयाम दिये थे। उन अनुभवों में जो कमी रह गयी थी उसे स्वामिनी की वक्र दृष्टि ने पूरा कर दिया था। __ बन्दीगृह की जीवन-चर्या सुनिश्चित थी। कोई काम नहीं, कोई विघ्न नहीं कोई भय नहीं। मैंने वहाँ इन एकाकी क्षणों में जीने का संकल्प किया, और वहाँ के हर पल, हर क्षण को चिन्तन में लगाकर सार्थक करने का प्रयत्न किया। बार-बार सोचती रही कि मैं पहली नारी नहीं हूँ जिसके सतीत्व पर विपदा आयी हो। मैं अकेली नहीं थी जिसे अलीक लांछन लगाकर दण्डित किया गया हो। मातृत्व का भार वहन करती महासती सीता के निष्कासन, लोकापवाद और अग्नि-परीक्षा की कथा कौन नहीं जानता ? उस विपत्ति काल में, जब कहीं शरण नहीं थी तब, उन्होंने धर्म की शरण लेकर ही तो वह आघात सहा था। ____ अंजना सती को भी कलंक लगाकर घर-परिवार से निष्कासित कर दिया गया था। बड़ी आशा लेकर वे अपने पिता की शरण में गयी थीं, पर विपत्ति के समय कोई सहाई नहीं होता। जिसके गर्भ में तद्भव मोक्षगामी, अतिशय पुण्यशाली जीव पल रहा था, उस महासती अंजना के लिए उसके माता-पिता ने अपने द्वार बन्द
54 :: चन्दना