Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ हुए पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्दजी महाराज ने महासती चन्दना पर कुछ लिखने का मुझे आदेश दिया। उसी समय मैंने उसी 'आत्म - कथ्य' शैली में चन्दना के मनोमन्थन को रेखांकित करके, उस सुकुमार राजपुत्री की कोमल अनुभूतियों और उस महासती की सुदृढ़ संकल्प-शक्ति को शब्दों में बाँधकर प्रस्तुत करने का संकल्प कर लिया। संयोग से वह 31 अक्टूबर 2000 मेरे जीवन के 75वें वर्ष में प्रवेश का दिन था । मैंने गुरु आज्ञा का सम्मान करते हुए 'चन्दना' का लेखन प्रारम्भ तो कर दिया, पर जितना आसान मैंने समझा था, वह काम उतना आसान नहीं था । चन्दना के सन्दर्भ तो प्रायः पुराणों और कथाओं में उपलब्ध थे, परन्तु कथावस्तु के नाम पर हर कहीं मुझे निराशा ही हाथ लगी। पुराणों में अधिकांशतः चाक्षुष वर्णन ही पढ़ने को मिलते हैं । पात्रों के मानसिक द्वन्द्व वहाँ अंकित नहीं हो पाते । पौराणिक प्रसंगों पर लेखनी चलाते समय यह कमी मुझे अखरती रही है। I चन्दना के कथानक को लेकर यही कठिनाई मेरे सामने रही । चन्दना के साथ घटी घटनाओं की सूचना तो पुराणों में है, परन्तु उनकी मनोदशा का चित्रण कहीं नहीं मिला । विचित्र घटनाओं के भँवर में डूबती-उतराती चन्दना के मानसिक द्वन्द्व कहीं अंकित नहीं मिले। श्वेताम्बर साहित्य में महावीर के आहार वाली घटना को अवश्य कुछ विस्तार से अंकित किया गया, परन्तु आन्तरिक संवेदनाओं का चित्रण वहाँ भी अनुपस्थित है। नव - साहित्य में अवश्य इस दिशा में कुछ प्रयास हुए हैं परन्तु कुछ कारणों से उनका अनुकरण मुझे इष्ट नहीं हुआ । ऐसी स्थिति में चन्दना की अनुभूतियों और वेदनाओं को लिये हुए अपनी कल्पनाओं की उड़ान के लिए कोई नया आकाश तलाशना मेरी प्राथमिकता बन गयी। उसके बिना लेखनी चलाना असम्भव सा प्रतीत हुआ। कई दिनों तक यह तलाश जारी रही तब अन्ततः कौशाम्बी के राजमहल में मैंने उस आकाश को ढूँढ़ निकाला जहाँ मेरी कल्पना उड़ान का अभ्यास कर सकती थी । कारा से मुक्त होकर, महावीर को आहार देने के पश्चात्, चन्दना ने अपनी सहोदरा, कौशाम्बी की महारानी मृगावती के साथ कुछ क्षण बिताये थे। मैंने वहाँ महासती चन्दना की सूक्ष्मतम अनुभूतियों को उन्हीं के मुख से कहलवाया है। अपने प्रयत्न में मुझे कितनी सफलता मिली है यह तो आप ही बता सकेंगे । पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्दजी महाराज ने, तथा समाधि - साधना में संलग्न पूज्य विशुद्धमती माताजी ने, मुद्रणपूर्व इस आलेख का अवलोकन करके अपना दस

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