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को अपनी कुटिया की लक्ष्मण रेखा लाँघने नहीं दी। उस स्त्री पर अविश्वास करने का मेरे पास कोई कारण नहीं था। लगता था मेरी दुर्भाग्यपूर्ण दयनीय परिस्थिति ने उसे द्रवित कर दिया था। अपनी गृहस्थी में कलह बचाते हुए जितना बन सके, वह मेरी रक्षा का प्रयास करना चाहती थी। मेरी प्राणहानि का निमित्त वह नहीं बनना चाहती थी।
सायंकाल भील बाहर चला गया। अब मदिरा के प्रभाव में बहकता आधी रात को लौटेगा। भीलनी को खुलकर बातें करने का अवसर मिल गया। वह मेरे पास आकर बैठ गयी। उसने पति को बता दिया था कि मेरा निर्णय अटल है और मैं किसी भी दशा में किसी की भोग्या नहीं बनूँगी। उसने यह भी जता दिया था कि मुझ पर बल प्रयोग करनेवाले को मेरी निष्प्राण देह मिलेगी, मैं नहीं मिलूँगी।
भीलनी ने बताया कि मेरी दृढ़ता ने उसके पति को निराश तो कर दिया परन्तु इस निराशा से उसके भीतर दूसरा विकार उत्पन्न हो गया है। वह मान रहा है कि मैं उसके अधीन, उसी की सम्पत्ति हूँ। वही मेरा स्वामी है। यदि मैं उसे स्वीकार नहीं करती हूँ तब भी वह मुझे मुक्त नहीं करेगा। मेरा विक्रय करके वह अपनी विफलता का बदला चुकाएगा और कुछ स्वर्ण भी अर्जित कर लेगा। ___ भीलनी के मुख से अपनी दुर्दशा की यह नवीन आशंका जानकर एक बार फिर मेरा साहस टूटने लगा। उस शीत रात्रि में भी मेरे माथे पर स्वेद बिन्दु झलक आये। दीदी ! मुझे लगा मैं अपने दुर्भाय के सामने अधिक देर टिक नहीं पाऊँगी। मैं हार जाऊँगी। विक्रेता और क्रेता की स्वार्थपूर्ति के लिए कौन जाने मैं किस कुम्भीपाक में डाल दी जाऊँगी। क्या यह आशंका ज्ञात हो जाने पर भी मुझे जीवित रहना चाहिए ? सब कुछ जानकर भी अपने आपको किसी अज्ञात नरकाग्नि में झोंक देना बुद्धिमानी होगी क्या ? यह तो दुस्साहस होगा।
कल उगने वाला सूर्य मेरे शील के चन्द्रमा पर खग्रास ग्रहण का साक्षी बनेगा। नहीं, मैं नहीं देखूगी कल का सूर्योदय। नहीं जीना मुझे ऐसी भयानक विभीषिका के बीच। इस समय मरण ही मेरे लिए श्रेयस्कर है।
दीदी ! मैं अधीर हो गयी। मेरे कण्ठ से चीख निकल गयी। नहीं, चीख निकर.ते-निकलते रह गयी। मैंने बलपूर्वक उसे कण्ठ में ही रोक लिया। मेरा मन रो रहा था, पर तन तो विवश था, वह खुलकर रो भी नहीं सकता था। कौन जाने मेरा क्रन्दन सुनकर किस घड़ी कौन कहाँ से आ जाए और मेरे साथ क्या कर बैठे ? परन्तु दीदी ! मानसिक पीड़ा के उस दुर्वह वेग को रोक पाना भी मेरे लिए
30 :: चन्दना