Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 43
________________ आयु की नहीं, शायद अनुभव की झुर्रियों से भरा था। उसकी भावहीन दृष्टि भीतर के सूनेपन का परिचय देती थी। भवन की पुरानी दासी होने के कारण शेष दासियों पर उसका आदेश चलता था। सब उसे 'मौसी' कहते थे। मौसी हाथ में जलपात्र लिये खड़ी थी। उसकी आँखों में निश्छल स्नेह की छाया थी। उनमें झलकता मातृत्व का भाव मुझे अनकहा आश्वासन सा लगा। उसने स्वामी का नाम बताया-'नगर सेठ वृषभसेन और सेठानी भद्रा।। ____ आँगन में हाथ-पैर धोकर जब मैं लौटी तब तक यमुना मौसी ने मेरे लिए कुछ खाद्य पदार्थ लाकर रख दिये थे। आग्रह करके, एक प्रकार से आदेश देकर, उसने कुछ खाने के लिए विवश कर दिया। उपवन क्रीड़ा के लिए निकलते समय माता ने आग्रहपूर्वक जो मोदक खिलाये थे, उसके बाद आज तीसरे दिन मैं मुँह में अन्न डाल रही थी। गृहस्वामिनी का दर्शन सन्ध्या समय हुआ। स्वामी भी वहाँ उपस्थित थे। स्वामिनी ने मेरे माता-पिता, जन्म-स्थान आदि के बारे में जानना चाहा, पर उनकी जिज्ञासा का समाधान मैं नहीं कर पायी। इस बीच मेरी आँख भर आयी होगी जिसे देखकर उन्होंने अधिक जोर नहीं दिया। अन्त में कुछ अधिक कृपा जताते हुए उन्होंने मुझसे कहा "तुम्हारे स्वामी ने देख-परख कर तुम्हें पसन्द किया होगा। निश्चिन्त रहो, अब यहाँ तुम्हें आराम मिलेगा, कोई कष्ट नहीं होगा।" - यमुना मौसी ने हमारे कर्तव्य समझाये और हमें कोठरी तक पहुँचा दिया। फिर देर तक हम सब आपस में बतियाते रहे। रात को यमुना मौसी एक बार फिर मेरे पास आयीं। लम्बी कष्टपूर्ण यात्रा की क्लान्ति और मौसी की संवेदना भरी बातों के मिले-जुले प्रभाव ने मुझे शीघ्र ही निद्रा-लोक में पहुंचा दिया। यदि दासत्व से उपजी मानसिक पीड़ा को छोड़ दिया जाए तो नगर सेठ के यहाँ दासी की दिनचर्या कष्टप्रद नहीं थी। सबके काम प्रायः निश्चित थे। पति-पत्नी दो का ही परिवार था, सन्तान पाने की उनकी अभिलाषा अतृप्त रह गयी थी। घर में सम्पत्ति अपार थी, भोगनेवाला कोई नहीं था। मौसी बताती थी कि इस घर में दासियों के प्रति दया का व्यवहार होता है। कई घरों में तो उनके साथ पशु की तरह निर्दयता का बर्ताव किया जाता है। मैंने तो कल ही अपने-आप को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था। आज सेठ 42:: चन्दना

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