Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ की मिठास घुली हुई थी। फिर भी मैं सहसा कुछ निर्णय नहीं कर पायी। क्या क्रीत दासी को स्वामी के साथ रथ पर बैठना उचित होगा ? मेरे असमंजस का अनुमान करके उन सज्जन ने अपने काँधे से कौशेय पट उतार कर मुझे दिया जिसे मैंने उनकी कृपा की तरह ओढ़ लिया। फिर उनके संकेत का अनुसरण करती मैं रथ पर एक ओर सिमट कर जा बैठी। स्वामी के बैठते ही रथ द्रुत वेग से राजपथ पर दौड़ने लगा। 40:: चन्दना

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64