Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 37
________________ अब मेरा भर दुख दूर नहीं होगा, वैशाली पर से भी दुख के बादल छंट जाएँगे। कितनी हर्षित होंगी माता सुभद्रा मेरी कुशलता का समाचार पाकर ! सच दीदी ! एक क्षण में ही मैंने यमुना की लहरों पर डोलती उस नौका पर आशाओं-कल्पनाओं का सप्तखण्ड महल बना लिया। अब राजमहल तक समाचार पहुँचाना ही मेरी एकमात्र समस्या रह गयी थी। किसी प्रकार उतना हो गया तो तत्काल सब ठीक हो जाएगा। मैं उसी का उपाय ढूँढ़ने में लग गयी। . यमुना तीर से कौशाम्बी तक मेरी कल्पनाएँ तीव्र गति से दौड़ती रहीं। कौशाम्बी पहुँचने के पूर्व कई बार कल्पना-रथ पर मैंने इस नगर की यात्रा कर डाली। जब चली थी तब अनजाने नगर तक आना मेरे लिए नितान्त अरुचिकर था। हाट मुझे वधस्थल-सा लगता था जहाँ मैं बलिपशु-सी विवश, बलात् खींचकर ले जायी जा रही थी। पर अब कौशाम्बी मुझे त्राणदाता लगने लगी थी। मैं वहाँ पहुँचने के लिए अधीर हो रही थी। सोचती थी शरीर में पंख होते तो उड़कर ही कौशाम्बी की धरती पर उतरती। 36:: चन्दना

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