Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 30
________________ दूर से ही भीलनी ने अंगुलि निर्देश करके अपनी कुटिया की ओर संकेत किया। उसका पति हमारी प्रतीक्षा में बाहर ही खड़ा था। रस्सी से बँधा बलि पशु जैसी विवशता में बलिपीठ तक जाता है, वैसी ही विवश होकर, भीलनी द्वारा खींचे जाने पर, मैंने उस कुटीर में पग रखा। मुझे कुश आसन पर बिठाकर वह एक मृद् भाण्ड में जल ले आयी। मैंने अनिच्छा जताते हुए पात्र सामने से हटा दिया और व्यग्र होकर कल्पना के वातायन से भविष्य की विभीषिका में झाँकने का प्रयास करने लगी। आधी घड़ी में ही पति-पत्नी आकर मेरे सामने बैठ गये। भील बार-बार मुझे बहलाने-फुसलाने और धमकाने की चेष्टा करता रहा। उसने मुझे भय भी दिखाये और जो कुछ वह शब्दों से नहीं कह पाया वह उसके निष्ठुर भावों और अभद्र संकेतों ने मेरी चेतना तक पहुँचा दिया। भीलनी बहुत कम बोली। वह भी पति के प्रस्तावों का समर्थन ही करती रही। ___ बीच-बीच में जब भील मुझ पर बल प्रयोग की धमकी देता तब अवश्य उस स्त्री के मुख पर विद्रूपता भरी मुसकान की एक रेखा आ जाती थी जिसे वह कुटिलतापूर्वक अपने पति की दृष्टि से छिपा लेती थी। उसके मुख पर आती वही वक्र रेखा मेरे धैर्य का आधार बन जाती थी। उसका अर्थ था कि मेरे साथ बलात् कछ भी घटित नहीं होगा। फिर भी मैं हर प्रकार की अप्रिय परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रतिपल सावधान थी। मैंने सिर हिलाकर असहमति का अपना मन्तव्य जता दिया। उस समय मेरा संकल्प ही मेरा सम्बल था इसलिए मैं आशंकित होकर भी भीत नहीं थी। मध्याह्न में एक बार पुनः मुझे समझाने और धमकाने का वह पूरा दृश्य दोहराया गया। इस बीच भील के पराक्रम का समाचार पाकर आस-पास की कुछ स्त्रियाँ किसी-न-किसी बहाने, मुझे देखने के लिए उस कुटिया की परिक्रमा कर गयीं। एक-दो पुरुष भी उस अभिप्राय से आये परन्तु भीलनी ने उस दिन किसी चन्दना :: 29

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