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प्राची ने प्रकाश फैलाया और पक्षियों ने चहकना प्रारम्भ किया तब मेरी ध्यानसमाधि टूटी। मैंने अपने परिवेश को ध्यान से देखा। सूर्योदय के कुछ पहले ही वनांचल में एक अनोखी हलचल मच गयी थी। पक्षी अन्धकार पर प्रकाश की विजय का जयगान करने लगे थे। पशु अपने शरणस्थल त्यागकर निकलने लगे थे। वृक्षों पर मर्कट लीलाएँ प्रारम्भ हो चुकी थीं। चारों छूट जीवन-संगीत के सातों स्वर गूंजने लगे थे।
बीती साँझ की अप्रिय घटना की टीस का अनुभव करते हुए भी मैं कुछ आश्वस्त थी कि इस निर्जन अटवी में रात्रि व्यतीत हो गयी और मेरा कोई अहित नहीं हुआ। कल उपवन में मेरे लिए मनुष्य ने राक्षस का रूप धर लिया था परन्तु रात्रिकाल में इस घोर वन के पशुओं ने मेरे साथ कोई पशुता नहीं दिखायी। सम्भवतः इसलिए कि पशु अकारण किसी को हानि नहीं पहुँचाते। या फिर इसलिए कि कल उपवन में मेरा कर्मोदय प्रतिकूल था और यहाँ वन में वैसा कुछ नहीं था। ____ मैंने सम्मेदाचल की ओर आवर्त और प्रणति पूर्वक सिद्धों को नमन किया। तेईस तीर्थंकर भगवन्तों का स्तवन करके पार्श्वप्रभु की वन्दना की और महावीर महामुनि के स्मरण में दो घड़ी काल बिताया। अपने आपको उनके श्रीचरणों की छाँह में मैं सुरक्षित अनुभव करती हूँ। उन्हें स्मरण करते समय मेरे सारे भय भाग जाते हैं। मुझे अपने भीतर एक अनोखी शक्ति का अनुभव होने लगता है।
वनश्री की पवित्र सुषमा चारों ओर क्षितिज तक बिखरी दिखाई दे रही थी। उसका अनन्त आकर्षण मेरी दृष्टि को हठात् बार बार अपनी ओर खींच रहा था और मैं निःशंक मन से निसर्ग की उस अपार सम्पदा का साक्षात्कार कर रही थी।
सहसा इसी बीच कुछ अस्पष्ट से मानव-स्वर मेरे कर्णगोचर हए। वह मानवध्वनि दूर कहीं वृक्षों के झुरमुट से आ रही थी। उस समय पक्षियों के बहुविध कलरव के मध्य भी मानव के बोल पहचानने में मुझसे कोई भूल नहीं हुई। अब तक मैं आश्वस्त हो चुकी थी कि अटवी के पशु-पक्षियों से मेरा अहित नहीं होगा,
24 :: चन्दना