Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 17
________________ हुई। समाचार मिलते ही जब उस पुण्य योग की अनुमोदना-सराहना की भावना लेकर हम वहाँ गये तब अकस्मात् हमसे बिछुड़ी हमारी लाड़ली बहन हमें वहाँ मिल गयी। __ हम सब तो तभी निराश हो चुके थे। हमारा परिवार तो अब चन्दना के मिलने की आशा ही छोड़ बैठा था। यह कैसा विचित्र संयोग है कि सारे प्रयास करके भी हम जिसकी छाया तक न पा सके, महावीर की पारणा के अवसर पर अनायास उन्हीं तपस्वी के चरणों में हमने उसे पा लिया। चन्दना के जन्म के समय हमारे माता-पिता को वैसा हर्ष नहीं हुआ होगा जैसे हर्ष की अनुभूति कल से हमें हो रही है। ___ चन्दना ने संघ की शरण में अपने आपको समर्पित कर दिया है। हमारे पास तो वह आज की ही धरोहर है। कल चन्दना हमारे पास नहीं रहेगी, पर बिछुड़ी हुई बहन को पाने के आह्लाद का आस्वाद हमें जीवन भर प्रमुदित करता रहेगा। हमारी चन्दना हमें मिल गयी है, वह अब कभी हमसे नहीं बिछुड़ सकेगी। विचारों के इसी सागर में डूबती-तैरती मृगावती यह जानने के लिए उत्कण्ठित थीं कि उस दिन वैशाली के उपवन से उनकी सहोदरा कैसे, कहाँ विलीन हो गयी थी। फिर कैसे वह सुरक्षित रही और कैसे कौशाम्बी तक आयी, उसने अपनी विपत्ति की सूचना राजभवन तक क्यों नहीं पहुँचायी, फिर कल कैसे महामुनि सन्मति को पड़गाहन करने का सुअवसर उसे मिला ? स्नेहपूर्वक बहन के कन्धे पर हाथ रखकर उन्होंने पूछा “उस दिन तुम्हारे साथ क्या अघट घट गया था चन्दन ! अकस्मात् कहाँ विलीन हो गयी थीं तुम ? फिर कौशाम्बी में आकर हम तक समाचार पहुँचाना क्या किसी प्रकार भी सम्भव नहीं था तुम्हारे लिए ?" “अब यह सब जानकर क्या करोगी दीदी ? वह सब बड़ा भयानक था। आज तो उसकी स्मृति से भी काँप जाती हूँ मैं। तुम्हारी चन्दन जीती जागती तुम्हारे सामने बैठी है। जैसा उसका तन-वदन सुरक्षित देख रही हो न, असीम पुण्योदय से वैसा ही उसका शील-सतीत्व भी सुरक्षित है, इतना जान लेना क्या पर्याप्त नहीं है तुम्हारे लिए ?" शान्त भाव से चन्दनबाला ने बहन को उत्तर दिया। “नहीं चन्दन ! यह पर्याप्त नहीं है हमारे लिए। तुमने जिन विकट 16 :: चन्दना

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