Book Title: Chandana
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ रात अभी गहराई नहीं थी। कौशाम्बी का राज-परिवार महारानी मृगावती के कक्ष में चन्दना के समीप एकत्रित था। आज बहुत दिनों के बाद मृगावती को अपनी लाड़ली बहन से मिलने का सुयोग मिला था। चन्दना आर्या संघ की शरण में पहँचना चाहती हैं। इसमें एक पल का भी बिलम्ब अब उन्हें सह्य नहीं है, पर कल बड़ी बहन का स्नेह-भरा आग्रह एक दिन के लिए उन्हें इस राजभवन में खींच ही लाया। सहोदरा के मोहपाश में आबद्ध वे केवल एक दिन के लिए यहाँ विरम गयी हैं। कुछ घड़ियों का बिलम्ब है, फिर तो जीवन की वह यात्रा प्रारम्भ होगी जिसमें कहीं कोई भय नहीं, कोई दुख नहीं। चिन्ताओं-आशंकाओं का जहाँ कोई प्रसंग ही प्रस्तुत नहीं होता। आज मृगावती के हर्ष का पार नहीं था। वे सोच रही थीं-कितना काल बीत गया जब महल के उपवन में से एक दिन चन्दना अकस्मात् बिछुड़ गयी थी। महल में तो इतनी ही सूचना आयी थी कि राजकुमारी उपवन में अभी-अभी तक थीं, परन्तु अब वे वहाँ कहीं दिखाई नहीं दे रहीं। फिर कितने प्रयास किये वैशाली के चरों ने, कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा गया राजकुमारी को ? पर जल-थल और नभ में कहीं भी उसका कोई चिह्न तक नहीं मिला। किसी नर-भक्षक ने अपना ग्रास बनाया होता तो चन्दना के वस्त्राभूषण कुछ तो शेष मिलते। पृथ्वी उसे लील गयी होती तो धरती फटने के चिह्न ढूँढ़कर वैशाली के कुशल तक्षक पाताल से भी उसे निकाल लाते। क्षण भर में ऐसे विलीन हो गयी राजकुमारी कि किसी को भान तक नहीं हुआ। सारी तलाश व्यर्थ रही। सारे उपाय विफल होते गये। __ कुछ दिनों में माता ने छाती पर पत्थर रखकर विधि के विधान की तरह अपनी सबसे प्यारी पुत्री का वियोग विवश स्वीकार कर लिया। पिता असहाय से कर्मोदय की बलवत्ता को सिर झुकाकर उसे भुलाने का जतन करने लगे। ___ फिर कल कौशाम्बी में दो चमत्कार एक साथ घटित हुए। महामुनि वर्धमान स्वामी के कठिन अभिग्रह का सुयोग मिला। दीर्घ अन्तराल के बाद उनकी पारणा चन्दना :: 15

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