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भट्टारक संप्रदाय
इसी प्रकार विजयनगर के मन्त्री इरुग दण्डनायक जैन थे। आप ने भ. धर्मभूषण के उपदेश से विजयनगर में कुन्थुनाथ का भव्य मन्दिर बनवाया था। जयपुर आदि राजस्थान के राज्यों में भी समय समय पर जैनधर्मीय मन्त्री हुए हैं।
जो राजा स्वयं जैन नहीं थे उन ने भी समय समय पर भहारकों की विद्वत्ता या मन्त्रप्रभाव से प्रभावित हो कर उन का सत्कार किया था। राजा भोज की सभा में लाडवागड गच्छ के भ. शान्तिषेण सस्कृत हुए थे। इसी गच्छ के भ. विजयसेन कनौज के राजा हरिश्चन्द्र द्वारा सन्मानित हुए थे। ईडर के राव रणमल ने भ. मलयकीर्ति का तथा कलबुर्गा के सुलतान फिरोजशाह ने भ. नरेन्द्रकीर्ति का सन्मान किया था। मालवा के सुलतान ग्यासुद्दीन द्वारा सूरत शाखा के भ. मल्लिभूषण का आदर किया गया। इसी शाखा के भ. लक्ष्मीचंद्र और ईडर के भ. ज्ञानभूषण ने कर्णाटक के देवराय, मल्लिराय, भैरवराय आदि कई स्थानीय शासकों से सन्मान पाया था। कारंजा शाखा के पूर्व रूप के भ. विशालकीर्ति दिल्ली के सुलतान सिकन्दर, विजयनगर के सम्राट विरूपाक्ष एवं आरग के दंडनायक देवप्प द्वारा सस्कृत हुए थे। इन्हीं के शिष्य विद्यानंद ने भी मल्लिराय आदि शासकों से सन्मान पाया था।
सेन गण, बलात्कार गण एवं पुन्नाट गण के प्राचीन समय के उल्लेख बहुधा दानपत्रों के रूप में प्राप्त हुए हैं। उत्तरकालीन चालुक्यों में राजा त्रिभुवनमल, रानी केतलदेवी, राजा त्रैलोक्यमल्ल आदि के दानपत्र उल्लेखनीय हैं। कच्छपघात वंश के राजा विक्रमसिंह ने भ. विजयकीर्ति को नवनिर्मित जिनमन्दिर के लिए भूमिदान दिया था। उत्तरकालीन भट्टारकों के विषय में भी ऐसे अनेक उल्लेख प्राप्त हो सकेंगे यद्यपि ऐसे प्रत्यक्ष उल्लेख अभी उपलब्ध नहीं हो सके हैं।
इन प्रत्यक्ष सम्बन्धों के अतिरिक्त ग्रन्थप्रशस्ति आदि में तत्कालीन राजाओं के अनेक उल्लेख मिलते हैं। ग्वालियर के तोमर वंशीय राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह, कीर्तिसिंह एवं मानसिंह का कालनिर्णय माथुरगच्छ के भट्टारकों ने उन के जो उल्लेख किए हैं उन्हीं से हो सकता है। मुगल वंश के बाबर से लेकर महम्मदशाह तक प्रायः सभी सम्राटों के उल्लेख अन्यान्य ग्रन्थप्रशस्तियों में मिले हैं। हिन्दुओं को . भयभीत कर देने वाले औरंगजेब के समय भी जैन ग्रंथकर्ता अपना कार्य शान्तिपूर्वक जारी रख सके थे | इन उल्लेखों में सम्राट अकबर के विषय में लाटीसंहिता के... कर्ता पण्डित राजमल्ल ने लिखे हुए ७० श्लोक विशेष महत्त्व के हैं। इन में एक महाकाव्य के समान ही अकबर और उस की राजधानी आगरा का वर्णन किया है।
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