Book Title: Bhattarak Sampradaya
Author(s): V P Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८६ भट्टारक संप्रदाय [ ७४५ - तत्पट्टे भ. श्रीविशालकीर्ति...तत्पट्टे भ. श्रीदेवेंद्रभूषण तत्पट्टे भ. श्री सुरेंद्र कीर्ति प्रतिष्ठितं ॥ ( सूरत, दा. पृ. ४६ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखांक ७४६ - रत्नत्रय यंत्र संवत १७४७ सके १६१२ ज्येष्ठ वदी ७ भ. श्रीइंद्रभूषण तत्पट्टे भ सुरेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठितं । श्रीकाष्ठासंघे लाडवागडगच्छे पुष्करगणे लोहाचार्यावये भ. श्रीनरेंद्रकीर्ति तत्पट्टे भ. श्रीप्रतापकीर्ति आम्नाये बघेरवाल ज्ञाति गोवाल गोत्रे सं. बापु पुत्र सं. भोज... श्री अबडनगर प्रतिष्ठितं ।। ( ना. ६० ' ) लेखांक ७४७ भरत भुजबली चरित्र ये ॥ २१७ श्रीकाष्ठांबर संग गंग सम निर्मल कहिये । क्षालित पाप कलंक पंक गणधर मुनि सहिये || लोहाचार्य वर मुनी गुणी सहु शास्त्रह ज्ञाता । कलयुग जानी चार गछ थापे सुभ हाता ।। पुन्नाट बागड गछ जु नंदीतट माथुर ये 1 गण चार नाम जु जुवा तेहना पति भासुर पुन्नाटसंज्ञक गछ स्वछ पुष्करगण राणो । विनयंधर सुरेश ईश तद्वंशे मानो || प्रतापकीर्ति भट्टारक तर्कशिरोमणि धामह । तत्पट्टे अतिसुहन भुवनकीर्ति अभिरामह ॥ छ नंदीतट विद्यागण सुरेंद्रकीर्ति नित वंदिये । तस्य शिष्य पामो कहे दुखदरिद्र निकंदिये || २१८ सक सोडस सत चौद बुद्ध फाल्गुण सुदपक्षह | चतुर्थिदिन चरित्र धरित पूरण करी दक्षह । कारंजो जिनचंद्र इंद्रवंदित नमि स्वार्थे । संघवी भोजनी प्रीत तेहना पठनार्थे ॥ afe सकल श्रीसंघने येथि सहू वांछित फले । चक्रिकाम ना करी पामो कह सुरतरु फले ॥ २१९ For Private And Personal Use Only (म. ८७ )

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