Book Title: Bhattarak Sampradaya
Author(s): V P Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 342
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय श्रीभूषण के बाद चन्द्रकीर्ति भट्टारक हुए। आप ने संवत् १६ १६५४ में देवगिरि में पार्श्वनाथ पुराण लिखा था ( ले. ७०९ ) । आप ने संवत् १६८१ में एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की ( ले. ७१० ) । पार्श्वनाथ पूजा, नन्दीश्वरपूजा, ज्येष्ठजिनवरपूजा, षोडशकारण पूजा, सरस्वती पूजा, जिन चउवीसी, पांडवपुराण तथा गुरुपूजा ये रचनाएं चन्द्रकीर्ति ने लिखीं ( ले. ७११-१८ ) । चन्द्रकीर्ति ने दक्षिण की यात्रा करते समय कावेरी के तीर पर नरसिंहपन में कृष्णभट्ट को बाद में पराजित किया । इस समय चारुकीर्ति भट्टारक भी उपस्थित थे ( ले. ७२० ) । चन्द्रकीर्ति के शिष्य लक्ष्मण ने चौरासी लक्ष योनि विनती, बारामासी, तीन चउवीसी विनती, तथा पार्श्वनाथ विनती की रचना की (ले. ७२१ - २४ ) । पंडित चिदून ने चंद्रकीर्ति की प्रशंसा की है ( ले. ७१९ ) । चन्द्रकीर्ति के पट्ट पर राजकीर्ति भट्टारक हुए। आप ने वाणारसी में विवाद में जय प्राप्त किया । हीरजी और हेमसागर ने आप की प्रशंसा की है (ले. ७२५-२६ ) | ब्रह्म ज्ञान ने इन के समय रविवार व्रत कथा लिखी (ले. ७२७ ) तथा इन के शिष्य पं. हाजी ने लाडबागड गच्छ की पट्टावली की एक प्रति लिखी ( ले. ७२८ ) । राजकीर्ति के पट्टशिष्य लक्ष्मीसेन हुए। आप ने शक १५६१ में पद्मावती मूर्ति, तथा संवत् १७०३ में बाहुबली मूर्ति स्थापित की ( ले. ७२९-३० ) । लक्ष्मीसेन के बाद इन्द्र भूषण भट्टारक हुए। आप ने शक १५८० में एक पार्श्वनाथ मूर्ति तथा एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की (ले. ७३१३२ ) । आप के कुछ शिष्यों ने संवत् १७१८ में गोमटेश्वर की यात्रा की (ले. ७३३ ) 1 १३४ इनके शिष्य श्रीपति ने संवत् १७३६ में कोकिल १३४ मूल लेख से प्रतीत होता है कि यह यात्रा सुरेन्द्रकीर्ति के समय हुई किन्तु संवत् निर्देश इन्द्रभूषण के समय के लिए ही अधिक उपयुक्त है । For Private And Personal Use Only

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