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काष्ठासंघ-नन्दीतट गच्छ
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विश्वसेन के पट्टशिष्य विद्याभूषण ने संवत् १६०४ में तथा संवत् १६३६ में दो पार्श्वनाथ मूर्तियां स्थापित की (ले. ६७६-७७ )। इन ने द्वादशानुप्रेक्षा की रचना की (ले. ६७८ )। हरदाससुत तथा राजनभट्ट ने इन की प्रशंसा की है ( ले. ६७९-८०)। .
विद्याभूषण के बाद श्रीभूषण पट्टाधीश हुए। संवत् १६३४ में इन का श्वेताम्बरों से वाद हुआ था और उस के परिणामस्वरूप श्वेताम्बरों को देशत्याग करना पड़ा था (ले. ६८१)। इन ने संवत् १६३६ में एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. ६८२ )। सोजित्रा में संवत् १६५९ में शान्तिनाथपुराण की रचना आप ने पूरी की (ले. ६८३ )। आप ने संवत् १६६० में एक पद्मावतीमूर्ति, संवत् १६६५ में एक रत्नत्रय यन्त्र तथा संवत् १६७६ में एक चन्द्रप्रभ मूर्ति स्थापित की (ले. ६८४-८६ )। आप की लिखी द्वादशांगपूजा उपलब्ध है ( ले. ६८७ )। आप के पिता का नाम कृष्णसाह तथा माता का नाम माकुही था (ले. ६८८)। आप ने वादिचंद्र को बाद में पराजित किया था (ले. ६९०९१ ) । विवेक, राजमल्ल और सोमविजय ने आप की प्रशंसा की है (ले. ६८९-९२)। आप के शिष्य हेमचन्द्र ने श्रावकाचार नामक छोटीसी कविता लिखी है (ले. ६९३ )। गुणसेन और हर्षसागर ने भी आप की प्रशंसा की है (ले. ६९४-९५)।
. श्रीभूषण के प्रधान शिष्य ब्रह्म ज्ञानसागर थे । इन ने संघपति बापू के लिए अक्षर बावनी लिखी (ले. ७०३ ) । नेमि धर्मोपदेश, नेमिनाथपूजा, गोमटदेव पूजा, पार्श्वनाथ पूजा, जिन चउवीसी, द्वादशी कथा, दशलक्षण कथा, राखी बन्धन रास, पल्यविधान कथा, निःशल्याष्टमी कथा, श्रुतस्कन्ध कथा, मौन एकादशी कथा ये इन की अन्य रचनाएं हैं (ले. ६९६-७०८) ।
१२३ पं. नाथूराम प्रेमी ने श्रीभूषण की साम्प्रदायिकता पर प्रकाश डाला है- देखिए जैन साहित्य और इतिहास पृ. ३४० । इस में इन के प्रतिबोध चिन्तामणि नामक ग्रन्ध का भी उल्लेख किया गया है।
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