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भट्टारक संप्रदाय विद्याभूषण के बाद धर्मचन्द्र पट्टाधीश हुए । इन के गुरुबन्धु भाणचंद ने संवत् १८९९ में पद्मावती मूर्ति स्थापित की (ले. ५१२ )।
सूरत शाखा की ही एक परम्परा भ. लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य अभयचन्द्र से प्रारम्भ हुई। अभयचन्द्र ने पद्मप्रभपूजा लिखी है। संभवतः आप ने नेमिचन्द्र विरचित गोमटसारटीका की पहली प्रति लिखी थी । आप के शिष्य धर्मरुचि तथा गुणसागर ने संवत् १५४८ में गोमटेश्वर के दर्शन किये (ले. ५१४-१६)। ... अभयचन्द्र के शिष्य अभयनन्दि हुए । इन के शिष्य सुमतिसागर ने षोडशकारण पूजा, दशलक्षण पूजा, जंबूद्वीप जयमाला, व्रत जयमाला तथा तीर्थजयमाला ये पूजापाठ लिखे ( ले. ५१७-२१)।
अभयनन्दि के शिष्य रत्नकीर्ति हुए। इन की शिष्या वीरमती ने संवत् १६६२ में एक महावीर मूर्ति स्थापित कराई (ले. ५२२)।
९० ब्र. शीतलप्रसादजी के कथनानुसार धर्मचन्द्र के बाद क्रमशः चन्द्रकीर्ति, गुणचन्द्र और सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक हुए [ दानवीर माणिकचन्द्र पृ. ३८ ]
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