Book Title: Bhattarak Sampradaya
Author(s): V P Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२६६ भट्टारक संप्रदाय
[ ६५५ - लेखांक ६५५ - विमलपुराण
रत्नभूषण विख्याते जगतीतले त्रिभुवनस्वामिस्तुतेभून्महान् । काष्ठासंघसुनामनि प्रभुयतौ विद्यागणे सूरिराद ।। सारंगार्णवपारगो बहुयशाः श्रीरामसेनो जिन- ।. ध्याना|विततिप्रधूतवृजिनो भानुस्तमोराशिषु ॥ १ तत्क्रमेण गणभूधरभानुः सोमकीर्तिरिव शीतमयूख. ।... ॥ २ तत्पदे विजयसेनभदंतो बोधिताखिलजन: कमनीयः ।। ३ तत्पट्टे सूरिराज: सकलगुणनिधिः श्रीयशःकीर्तिदेवः । तत्पादांभोजषट्पत्सकलशशिमुखो वादिनागेंद्रसिंहः ॥ संजझे प्रांतसेनोदय इति वचसा विस्तरे स प्रवीणः । तत्पद्वार्जालिसक्तत्रिभुवनमहिमा तन्मुखप्रांतकीर्तिः ॥ ४ राजते रजनिनाथशशांको तत्पदोदयनगाहिमदीप्तिः । तर्कनाटककुलागमदक्षो रत्नभूषणमहाकविराजः ।। ५ श्रीमल्लोहाकरेऽभूत् परमपुरवरे हर्षनामा वरीयान् । तत्पत्नी साधुशीला गुणगणसदनं वीरिकाख्येन साध्वी ॥ पुत्रः श्रीकृष्णदासो रतिप इव तयोर्ब्रह्मचारीश्वरश्च । सत्कीर्ती राजते वै वृषभजिनपदांभोजषदपत्समानः ॥ ६ गूजरे जनपदे पुरे कृतः कल्पवल्लयभिध एकवत्सरात् । वर्धमानयशसा मया पुरोः पत्कजाहितसुचेतसा ध्रुवं ।। ८ वेदर्षिषट्चंद्रमितेथ वर्षे पक्षे सिते मासि नभस्यलंभे । एकादशी शुक्रमृगर्भयोगे ध्रौव्यान्विते निर्मित एष एव ।। १०
(अध्याय १०, हरीभाई देवकरण ग्रंथमाला ) लेखांक ६५६ - ज्येष्ठजिनवरपूजा
त्रिभुवनकीर्ति पदपंकज वरिय । रत्नभूषण सूरि महा कहिया ॥ १७ ब्रह्म कृष्ण जिनदास विस्तरिया । जयजयकार करी उच्चरिया ॥ १८
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