Book Title: Bhattarak Sampradaya
Author(s): V P Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ६७१] १६. काष्ठासंघ-नन्दीतट गच्छ २६९ लेखांक ६६७ - अतिशय जयमाला धर्मसेन पट्चत्वारिंशत् शुभगुणगणै राजते योरिहंता । स्वस्वस्थाने स्थितनरसुरान् वर्षते धर्मतोयं ॥ तस्मै देयो जलकुसुमभरैर्दीपसद्धृपकैश्च । काष्ठासंघे भुवनविदिते धर्मसेनैः सूरिभिः ॥ ९ ( म. २४) लेखांक ६६८ - काम क्रोध परिहरवि काष्ठासंघमंडन भयो । कवि वीरदास सचूं चवी धर्मसेन भट्टारक जयो ॥२ ( भा. ७ पृ. १६) लेखांक ६६९ - १ मूर्ति विश्वसेन सं. १५९६ वर्षे फा. वदि २ सोमे श्रीकाष्ठासंघे नरसिंघपुरा ज्ञातीय नागर गोत्रे म. रत्नस्त्री भा. लीलादे...नित्यं प्रणमति भ. श्रीविश्वसेन प्रतिष्ठा ॥ ( भा.७ पृ. १६) लेखांक ६७० - आराधनासारटीका इति आराधनाटीका समाना | भ. श्रीविश्वसेनेन लखिता। श्रीकाष्ठासंघे नंदीतटगच्छाधिराज भ. श्रीविमलसेन तत्पट्टे भ. श्रीविशालकीर्तिगुरुभ्यो नमः । (ना. १०२) लेखांक ६७१ - काष्टासंघ गुरुराय लक्ष्मीसेनह गुरु भणिए । धर्मसेन तस पाटि नाम यस श्रवणे सुणिए । विमलसेन विख्यातकीर्ति राय राणा रीझे। सर्व सौख्य संपत्ति नाम परभाती लीजे ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374