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१५ काष्ठासंघ-बागड गच्छ लेखांक ६४५ - ? मूर्ति
सुरसेन श्रीसुरसेनोपदेशेन सिंहै कयशोराजनोन्नैकै सहोदरैः संसारभयभीतैरतजिनबिंब कारितं इति ॥ जयति श्रीवागटसंघः ।। संवत् १०५१ कृष्ण गणेनघ...।
(कटरा, जर्नल आफ एशियाटिक सोसायटी भा. १९ पृ. ११०) लेखांक ६४६ - जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला यश कीर्ति
आसि पुरा वित्थिण्णे बायडसंघे ससंकसो (भो)। मुणिरामइत्ति धीरो गिरिव णईसुव्व गंभीरो ।। १८ संजाउ तस्स सीसो विबुहो सिरिविमलइत्ति विक्खाओ। विमलपरत्ति रवडिया धवलिया धूणिय गयणाययले ॥ १९ जसइत्ति णाम पयडो पयपयरुहजुअलपडियभव्ययणो । सत्थमिणं जणदुलहं तेण हहिय समुद्धरियं ॥ २६
( अ. २ पृ. ६०६ )
काष्ठासंघ-बागड गच्छ काष्ठासंघ के चार गच्छों मे एक बागड गच्छ भी है । इस के उल्लेख सिर्फ दो मिले हैं । सम्भवतः यह गच्छ लाडबागड गच्छ में जल्दी ही विलीन हो गया था ।
इस गच्छ के आचार्य सुरसेन के उपदेश से सिंहराज आदि बन्धुओं ने संवत् १०५१ में एक जिनमूर्ति स्थापित की थी (ले. ६४५)।
रामकीर्ति के प्रशिष्य तथा विमलकीर्ति के शिष्य यशःकीर्ति इस संघ के दूसरे ज्ञात आचार्य हैं । आप ने जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला नामक मन्त्रशास्त्र के ग्रन्थ की रचना की थी (ले. ६४६)। इन का समय अनुमानतः १५ वीं सदी है।
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