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भट्टारक संप्रदाय
इन के अनंतर नरेंद्रसेन पट्टाधीश हुए। आप ने शक १६५२ मे एक ज्ञानयंत्र प्रतिष्ठित किया [ले. ६४ । सूरत मे रहते हुए आप ने संवत् १७९० मे आश्विन कृष्ण १३ को यशोधरचरित की प्रति लिखी (ले. ६५] । आप की पूजा से आप की गुरुपरंपरा की नामावली मिलती है [ले. ६६] । आप ने पार्श्वनाथ पूजा और वृषभनाथ पाळणा ये रचनाएं लिखी [ले. ६७, ६८ ] | आप के शिष्य अर्जुनसुत सोयरा ने कैलास छप्पय लिखे जिन मे आप की चंपापुर यात्रा का भी उल्लेख है । कैलास छप्पय की रचना देवलगांव मे हुई थी [ ले. ६९] ।
नरेन्द्रसेन के पट्ट पर शान्तिसेन प्रतिष्ठित हुए। आप ने कारंजा मे शक १६७३ की फाल्गुन कृष्ण १२ को एक चंद्रप्रभ मूर्ति स्थापित की (ले. ७० )। शक १६७५ की भाद्रपद शुक्ल १२ को आप ने एक षोडश कारण यंत्र प्रतिष्ठित किया (ले. ७१ ) । शक १६७८ की माघ शुक्ल १४ को पार्श्वनाथ की एक मूर्ति आप के द्वारा प्रतिष्टित हुई (ले. ७२ )। आप की शिष्या शिखरश्री के शिष्य वानार्शिदास ने संवत् १८१६ मे देवलगांव मे हरिवंश रास की एक प्रति लिखी (ले. ७३ )। आप के शिष्य रतन ने रामटेक यात्रा के समय" शान्तिनाथ की एक विनती बनाई थी (ले. ७४) । आप के एक शिष्य तानू के कवित्तों से पता चलता है कि आप फूटानसेठ और चंदाबाई के पुत्र थे तथा आप ने सागरस्नान किया और बिदर के जिन मंदिर के दर्शन किये थे (ले. ७५)।
शान्तिसेन के बाद सिद्धसेन पट्टाधीश हुए। आप ने संवत् १८२६ की वैशाख कृष्ण ११ को कोई मूर्ति प्रतिष्टित की ( ले. ७७ )।" इस के दूसरे ही दिन साह रतन ने आप की एक आरती बनाई जिस मे कहा
१७ इन की रचना का शक प्रशस्ति मे दिया है। किन्तु उस का अर्थ स्पष्ट नही है।
१८ इस का शक निर्देश भी स्पष्ट नहीं है । १९ इस का शक निर्देश गलत है ।
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