________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बलात्कार गण - ईडर शाखा इस शाखा का आरम्भ भ. सकलकीर्ति से हुआ । आप भ. पद्मनन्दी के शिष्य थे जिन का वृत्तान्त उत्तर शाखा में आ चुका है । आप ने आयु के २५ वें वर्ष में दीक्षा ग्रहण की तथा २२ वर्ष दिगम्बर मुनि के रूप में रहे । आप ने संवत् १४९० की वैशाख शु. ९ को एक चौवीसी मूर्ति, संवत् १४९२ की वैशाख कृ. १० को एक पार्श्वनाथ मूर्ति, संवत् १४९४ की वैशाख शु. १३ को अबू पर्वत पर एक मन्दिर, संवत् १४९७ में एक आदिनाथ मूर्ति तथा संवत् १४९९ में सागवाडा में आदिनाथ मन्दिर की प्रतिष्टा की । सागवाडा में ही आप ने भ. धर्मकीर्ति का पट्टाभिषेक किया [ ले. ३२९-३४ ] । आप ने प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, पार्श्वपुराण, सुकुमारचरित. मूलाचारप्रदीप, आराधना आदि ग्रन्थों की रचना की [ ले. ३३५-३९ ।" आप के शिष्य ब्रह्म जिनदास ने संवत् १५१० की माघ शु. ५ को एक पंचपरमेष्ठी मूर्ति स्थापित की तथा गुणस्थान गुणमाला और ज्येष्ठ-जिनवरपूजा की रचना की [ ले. ३४०-४२ ] ।
सकलकीर्ति के पट्ट पर भुवनकीर्ति भट्टारक हुए | आप ने संवत् १५२७ की वैशाख कृ. ११ को एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की [ ले. ३४३ ] । आप के शिष्य ब्रह्म जिनदास ने संवत् १५०८ की मार्गशीर्ष शु. ४ को रामायणरास की, तथा संवत् १५२० की वैशाख शु. १४ को हरिवंशरास की रचना की । इन रचनाओं में आप ने मल्लिदास और गुणदास इन शिष्यों का भी उल्लेख किया है [ले. ३४४-४५] । कर्मविपाकरास, धर्मपरीक्षारास, जम्बूस्वामीरास, जीवन्धररास, जसोधररास,
५७ सकलकीर्तिकृत महावीरपुराण और सुदर्शनचरित्र के हिन्दी रूपान्तर प्रकाशित हुए हैं । इन के अलावा ग्रन्थसूचियों में इन के अनेक ग्रन्थों के नाम मिलते हैं । किन्तु निश्चितता के खयाल से यहां उन का उल्लेख छोड दिया है। सकलकीर्ति ने किसी ग्रन्थ में लेखनकाल या गुरुपरम्परा का उल्लेख नहीं किया है।
For Private And Personal Use Only