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बलात्कार गण-भानपुर शाखा
इस शाखा का आरम्भ भ. ज्ञानकीर्ति से हुआ। आप भ. भुवनकीर्ति के शिष्य थे जिन का वृत्तान्त ईडर शाखामें आ चुका है । आप के शिष्य ब्रह्म देवदास के लिए संवत् १५३४ की फाल्गुन शु. ५ को पुण्यास्रव कथाकोष की एक प्रति लिखी गई (ले, ३९६ )। आप के दूसरे शिष्य कुबेर ने रेणुपुर के ऋषभनाथ मन्दिर की यात्रा का उल्लेख किया है (ले. ३९७)।
ज्ञानकीर्ति के बाद रत्नकीर्ति भट्टारक हुए । आप ने संवत् १५३५ नोगाम में दीक्षा ली थी (ले. ३९९-४००)। आप के शिष्यों से अनन्तकीर्ति आदि ६३ लोग दक्षिण में गये थे जिन की परम्परा चलती रही (ले. ४०२)।
रत्नकीर्ति के बाद यशःकीर्ति नोगाम में पट्टाभिषिक्त हुए। आप का स्वर्गवास भीलोडा में संवत् १६१३ में हुआ (ले. ४०२)।
यशःकीर्ति के बाद सिंहनन्दी तथा उन के बाद गुणचन्द्र भट्टारक हुए । आप ने संवत् १६३० में सागवाडा में हर्षसाह की प्रेरणा से अनन्तनाथपूजा की रचना की (ले. ४०४ )। आप का पट्टाभिषेक सांवला गांव में तथा स्वर्गवास सागवाडा में संवत् १६५३ में हुआ ( ले. ४०५)। संवत् १६३९ की मार्गशीर्ष शु. १ को षडावश्यक की एक प्रति आप ने अपने शिष्य डुंगरा को दी थी ( ले. ४०६ ) ।
गुणचन्द्र के बाद जिनचन्द्र और उन के पश्चात् सकलचन्द्र पट्टाधीश हुए। इन के बन्धु यश की कृपा से ब्रह्म रायमल्ल ने संवत् १६६७ की आषाढ शु. ५ को ग्रीवापुर में भक्तामरवृत्ति की रचना की (ले. ४०८)। सकलचन्द्र का पट्टाभिषेक नोगाम में और स्वर्गवास सागवाडा में संवत् १६७० में हुआ (ले. ४०९)।
६७ यह धूलिया का संस्कृत रूप है। इसी का प्रसिद्ध नाम केशरियाजी है।
६८ सम्भवतः इन्ही का उल्लेख ब्रह्म नेमिदत्त और ब्रह्म श्रुतसागर ने किया है (ले. ४६६, ४७२)।
६९ यह सम्भवतः मानपुर का संस्कृत रूपान्तर है जो अमरेली जिले में है।
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