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भट्टारक संप्रदाय
को लिखी गई (ले. ४६० ) । पट्टावली के अनुसार आप ने मंडप गिरि और गोपाचल की यात्रा की तथा ग्यासदीन ने आप का सन्मान किया था | आप पद्मावती के उपासक थे [ ले. ४६१ ] ।
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मल्लिभूषण के समय श्रुतसागरसूरि ने इलदुर्ग के भानुभूपति के मन्त्री भोजराज की पुत्री पुत्तलिका के साथ गजपन्थ और तुंगीगिरि की यात्रा की तथा वहीं पल्यविधान कथा की रचना की [ले. ४६३ ] | अक्षय निधान कथा भी आप ने इन्हीं के समय लिखी [ ले. ४६२ ] ।
भ. सिंहनन्दी ने अपने मंगलाष्टक में मल्लिभूषण का गुरूरूप में उल्लेख किया है। इन की एक रचना माणिकस्वामी विनती भी है [ ले. ३६४६५ ] | ब्रह्म नेमिदत्त ने अपने आराधना कथाकोश में मल्लिभूषण, सिंहनन्दी और श्रुतसागर को वन्दन किया है । इन ने पण्डित राघव के आग्रह पर अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ पूजा लिखी [ले. ४६६-६७ ] ।”
मल्लभूषण के पट्टशिष्य लक्ष्मीचन्द्र हुए। इन के उपदेश से सांगणक ने संवत् १५५६ की चैत्र शु. १ को हंसपत्तन" में नागकुमारचरित की एक प्रति लिखी [ ले ४६८ ] । संवत् १५७५ की ज्येष्ठ कृ. ७ को घोघा में सभूबाई ने महापुराण की एक प्रति लक्ष्मीचंद्र के शिष्य नेमिचन्द्र को अर्पित की [ ले. ४६९ ] । संवत् १५८२ की चैत्र शु. ५ को आप के शिष्य ज्ञानसागर के लिए आर्यिका विनयश्री ने महाभिषेक टीका की प्रति लिखी [ ले. ४७० ] । संवत् १६०५ में लक्ष्मीचंद्र के शिष्य सकलकीर्ति ने नयनन्दिकृत सुदर्शनचरित की एक प्रति लिखी [ ले. ४७१]
७७ मालवे का सुलतान - राज्यकाल १४६९ - १५०० ई. ७८ ईडर के राव भाणजी-र - राज्यकाल १४४६ - ९६ ई.
७९ नेमिदत्त ने संवत् १५८५ में श्रीपाल चरित लिखा । सुदर्शनचरित, रात्रिभोजनत्याग कथा तथा नेमिनाथ पुराण ये इन के अन्य ग्रन्थ हैं ( अनेकान्त वर्ष ९ पृ. ४७६ )
८० हंसापुर ( जिला सूरत )
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