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भट्टारक संप्रदाय
ये आप की अन्य रचनाएं हैं। आप के शिष्य ब्रह्म गुणदास ने मराठी श्रेणिकचरित्र लिखा है [ ले. ३५१ ] ।
भ. भुवनकीर्ति के बाद भ. ज्ञानभूषण पट्टाधीश हुए। आप ने संवत् १५३४ में एक चारित्रयंत्र, संवत् १५३५ में एक रत्नत्रय मूर्ति, संवत् १५४२ की ज्येष्ठ शु. ८ को एक पद्मप्रभ मूर्ति, संवत् १५४३ में एक रत्नत्रय मूर्ति, संवत् १५४४ में एक अन्य मूर्ति, तथा संवत् १५५२ की ज्येष्ठ कृ. ७ को एक सुमतिनाथ मूर्ति की स्थापना की (ले. ३५२-५७ ) । संवत् १५६० में आप ने तत्त्वज्ञानतरंगिणी की रचना की ( ले. ३५८ )। पट्टावली के अनुसार इन्द्रभूपाल, देवराय, मुदिपालराय, रामनाथराय, बोमरसराय, कलपराय तथा पाण्डुराय ने आप का सन्मान किया था [ ले. ३५९ ] । आप के शिष्य नागचन्द्रसूरि ने विषापहारटीका की तथा गुणनन्दि ने ऋषिमंडलपूजा की रचना की [ ले. ३६०-६१ ] । ६१
____ भ. ज्ञानभूषण के पट्टशिष्य भ. विजयकीर्ति हुए। आप ने संवत् १५५७ की माघ कृ. ५ को तथा संवत् १५६० की वैशाख शु. २ को शान्तिनाथ मूर्तियां तथा संवत् १५६१ की वैशाख शु. १० को रत्नत्रय मूर्ति स्थापित की [ ले. ३६२-६४ ] । संवत् १५६८ की फाल्गुन शु.
५८ सकलकीर्ति के समान ब्रह्म जिनदास के ग्रन्थों की संख्या भी काफी अधिक है । इन के विषय में पं. परमानन्द का एक लेख अनेकान्त वर्ष ११ पृ. ३३३ पर देखिए।
५९ भ. भुवनकीर्ति के शिष्य ज्ञानकीर्ति से भानपुर परम्परा का आरम्भ हुआ था इस लिए उनका वृत्तान्त अगले प्रकरण में संगृहीत किया है।
६. ये कर्णाटक के स्थानीय शासक थे किन्तु इन के पृथक् निश्चित राज्यकाल ज्ञात नहीं हो सके।
६१ शानभूषण के विषय में देखिए- पं. नाथूराम प्रेमी का लेख ( जैन साहित्य और इतिहास पृ. ५२६ ) तथा पं. परमानन्द का लेख ( अनेकान्त वर्ष
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