________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Ah
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बलात्कार गण-प्राचीन
इन के अनंतर चित्रकूटाम्नाय के मुनिचंद्र के प्रशिष्य तथा अनन्तकीर्ति के शिष्य केशवदेव को दिये गये दान का उल्लेख मिलता है । इस लेखका समय १२ वीं शताब्दी माना गया है [ ले. ९० ।
इन के बाद पद्मप्रभ आचार्य का उल्लेख आता है। आप की गुरुपरम्परा पक्षोपवासिमुनि-नयनन्दि-श्रीधर-चन्द्रकीर्ति-श्रीधर-नेमिचन्द्र-सहपाठी वासुपूज्य-पद्मप्रभ इस प्रकार कही गई है। संवत् ११४४ की पौष कृष्ण १४ को उत्तरायण संक्रान्ति के अवसर पर आप को कुछ दान दिया गया था [ ले. ९१ ।"
अगला उल्लेख भट्टारक कुमुदचंद्र की एक मूर्ति का है। जो पार्श्वनाथ के नगरजिनालय मे स्थापित की गई थी। इस का समय भी बारहवीं सदी माना गया है [ ले. १२ ] ।
__इन के बाद पंडित देशनंदि का उल्लेख मिलता है। आप ने संवत् १२५८ में एक संभवनाथ मूर्ति प्रतिष्ठापित की [ ले. ९३ ] ।
श्रवणसेन और कनकसेन इन दो बन्धुओं के द्वारा संवत् ३३५ की पौष शुक्ल १५ को प्रतिष्ठापित किये गये चन्द्रप्रभ मन्दिर का उल्लेख एक उत्तरकालीन लेख में मिलता है [ले. ९४ ] पं. प्रेमीजी का अनुमान है कि ये अंक १३३५ होंगे।
इन के अनन्तर स्वामी वर्धमान का शक १२८५ का उल्लेख प्राप्त होता है [ले. ९५] । आप की गुरुपरम्परा बनवा(सिवम)तकीर्ति-देवेंद्रविशालकीर्ति-शुभकीर्ति-धर्मभूषण-अमरकीर्ति धर्मभूषण वर्धमान इस प्रकार
२१ कुंदकुंदाचार्य विरचित नियमसार की संस्कृत टीका सम्भवत: इन्ही पद्मप्रभदेव की बनाई है।
२२ बलात्कार गण में सेनान्त नाम नहीं पाये जाते । संभवतः ये गृहस्थों के नाम हैं। २३ वर्धमान विरचित वरांगचरित के परिचय के लिये जयसिंहनंदि कृत वरांगचरित की डॉ. उपाध्ये लिखित प्रस्तावना देखिए ।
For Private And Personal Use Only