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बलात्कार गण-लातूर शाखा
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सागर ने मराठी हरिवंशपुराण पूर्ण किया (ले. २०५)। पुण्यसागर की दूसरी रचना आदितबार कथा है (ले. २०६ )।
विशालकीर्ति के दूसरे शिष्य पद्मकीर्ति हुए । आप ने शक १६०१ की फाल्गुन शु. ११ को एक सम्यग्दर्शन यन्त्र स्थापित किया (ले.२०७), शक १६०७ में एक मूर्ति तथा एक यन्त्र स्थापित किया (ले. २०८-९)।
पद्मकीर्ति के बाद विद्याभूषण पट्टाधीश हुए । इन ने शक १६०८ को फाल्गुन व. १० को एक सम्यक्चारित्र यंत्र स्थापित किया (ले. २१०)।
विद्याभूषण के पट्टशिष्य हेमकीर्ति हुए। आपने संवत् १७५२ की माघ व. ८ को एक आदिनाथ मूर्ति तथा शक १६२६ की माघ शु. १३ को दो चौवीसी मूर्ति स्थापित की (ले. २११-१३)। शक १६४८ की आषाढ शु. ६ को आप ने जिनपूजा की रचना की (ले. २१४ ) । शक १६५३ के वैशाख में आपने एक षोडशकारण यंत्र और एक दशलक्षण यंत्र भी स्थापित किया (ले. २१५-१६)। मकरन्द की एक कविता से ज्ञात होता है कि रामटेक क्षेत्र के विभाग में हेमकीर्ति का शिष्यवर्ग रहता था (ले. २१७) तथा यह क्षेत्र उस समय देवगढ राज्य के अन्तर्गत था।
हेमकीर्ति के बाद अजितकीर्ति पट्टाधीश हुए। आप ने शक १६९७ की फाल्गुन शु. २ को एक शान्तिनाथ मूर्ति तथा एक पार्श्वनाथ मूर्ति प्रतिष्ठित की (ले. २१८-१९)। आप ने शक १७२२ की भाद्रपद शु. १० को एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. २२०)।
अजितकीर्ति के बाद चन्द्रकीर्ति पट्टाधीश हुए। इन के पट्टशिष्य नागेन्द्रकीर्ति ने मराठीमें कई पदोंकी रचना की है (ले. २२१-२२)।"
३० यह पुराण उज्जतकीर्ति के शिष्य जिनदास ने देवगिरिपर आरंभ किया था लेकिन उनका बीच में ही स्वर्गवास हो जानेसे पुण्यसागरने उसे पूरा किया।
३१ नागेन्द्रकीर्ति के बाद विशालकीर्ति भट्टारक हुए। तक्त लातूर, गादी नागपुर, मठ पूना ऐसी इन की व्यवस्था थी। इन का स्वर्गवास संवत् १९४८ की
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