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भट्टारक संप्रदाय तपश्चर्या करते थे। इनने संवत् १३८० में कोई मूर्ति स्थापित की थी (ले. २२८ )।
शुभकीर्ति के बाद धर्मचन्द्र पट्टाधीश हुए। ये संवत् १२७१ की श्रावण शुक्ल ७ को पट्टारूढ हुए तथा २५ वर्ष पट्ट पर रहे। इनकी जाति हूंबड और निवास स्थान अजमेर था। हमीर राजाने इन्हें प्रणाम किया था (ले. २२९-३०)।
इनके बाद रत्नकीर्ति संवत् १२९६ की भाद्रपद कृ. १३ को पट्टारूढ हुए। ये १४ वर्ष पट्ट पर रहे। ये भी हूंबड जाति के और अजमेर निवासी थे (ले. २३१-३२ )।
रत्नकीर्तिके पट्ट पर दिल्लीमे संवत् १३१० की पौष शु. १५ को भट्टारक प्रभाचन्द्रका अभिषेक किया गया। ये ब्राह्मण जातिके थे। खंभात, धारा, देवगिरि आदि स्थानोंमें आपने विहार किया तथा दिल्लीमें महमदशाँहँको प्रसन्न किया (ले. २३३, २३६)। गुर्वावलीके अनुसार आपहीने पूज्यपादकृत समाधितन्त्रपर टीका लिखी थी किन्तु यह प्रश्न विवादास्पद है (ले. २३४ )। प्रभाचन्द्र ७४ वर्ष तक पट्टाधीश रहे ।
आप के शिष्य ब्रह्म नाथूरामने दिल्लीमें संवत् १४१६ की माघ शु. ५को फिरोजसाहैके राज्यकालमें आराधनापंजिकाकी एक प्रति लिखी (ले.२३५)। ___३५ सम्भवतः संवत्का अंक यहां गलत है।
३६ संस्कृत साहित्यमे हमीर शब्दका प्रयोग मुसलमान राजा इस सामान्य अर्थमे हुआ है उसीका यह उदाहरण है। चित्तौडके राणा हमीर सन् १३०१ मे अधिकारारूढ हुए इस लिए यह उनका उल्लेख नही हो सकता ।
३७ नासिरुद्दीन महम्मदशाह (सन् १२४६-६६)
३८ इस प्रश्नकी चर्चाके लिए न्यायकुमुदचन्द्रकी प्रस्तावना देखिए। एक मतके अनुसार प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र तथा समाधितन्त्रटीका, रत्नकरण्डटीका और प्राभृतत्रयटीकाके कर्ता एक ही प्रभाचन्द्र हैं जो ११ वीं सदीमें हुए। दूसरे मतके अनुसार इन टीकाग्रन्थोंके कर्ता ही प्रस्तुत प्रभाचन्द्र हैं।
३९ फिरोजशाह तुघलक [ सन् १३५१-८८ ]
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