Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ कि महात्मा गाँधी के माता-पिता भारतीय संस्कृति के जैन धर्म के अनुयायी थे, जो अहिंसा में अटूट विश्वास करता है। अहिंसा का अर्थ है, किसी भी प्रकार के प्राणी को चोट न पहुँचाना यह इसका एक मूलभूत सिद्धान्त है। यह एक ऐसा (जैन) दर्शन था, जिसे गाँधी जी ने पूरे संसार में बड़े गर्व के साथ फैलाया। जैन लोगों का विश्वास है कि कोरी बुद्धिमत्ता नहीं, अहिंसात्मक करूणा का सिद्धान्त ही वह रास्ता है, जो परमात्मा तक बना देता है। ता महात्मा गाँधी की माता पुतली बाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। महात्मा गाँधी की आठ वर्ष की उम्र में सगाई और बारह वर्ष की उम्र में शादी हुई थी। उन्नीस वर्ष की उम्र में युवा गाँधीमान अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन विश्वविद्यालय के 'लॉोना स्कूल' में उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। भारत छोड़ने से पूर्व उनकी माताजी ने उनको जैन धर्म के तीन व्रत दिलवाये। जहाँ निषेध था - शराब, मांस और शारीरिक सम्बन्ध का।शकमा अनुया इस सन्दर्भ में गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “गुजरात में जैन सम्प्रदाय का बड़ा जोर है। उसका प्रभाव हर जगह, हर काम में पाया जाता है। इसलिए मांसाहार का जैसा विरोध और तिरस्कार गुजरात में श्रावकों तथा वैष्णवों में पाया जाता है, वैसा हिन्दुस्तान में या सारी दुनिया में और कहीं नहीं पाया जाता। ये मेरे संस्कार थे।" मानला गाँधी जी ने लिखा है, मेरे पिताजी के पास जैन धर्माचार्यों में से भी कोई न कोई हमेशा आते रहते थे। पिता जी उन्हें भिक्षा भी देते थे। वे पिताजी के साथ धर्म और व्यवहार की बातें किया करते थे। मेरी विदेश यात्रा पर मेरी माता जी ने शंकाएँ उठाई। मैंने माँ से कहा, तू मेरा विश्वास नहीं करेगी? माता जी बोली - मुझे तेरा विश्वास है, पर दूर देश में क्या होगा? मेरी तो अक्ल काम नहीं करती। मैं बेचरजी स्वामी से पूछूगी। मिली बेचर जी स्वामी मोढ़ बनियों में बने हुए एक जैन साधु थे। जोशी जी की तरह वे भी हमारे सलाहकार थे। उन्होंने मदद की। मैंने माँस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। तब माता जी ने मुझे विदेश जाने की आज्ञा दी। जीशामरावतका इस प्रकार महात्मा गाँधी के जीवन पर बचपन से ही जैन धर्म के सिद्धान्तों का प्रभाव था। बम्बई में जैन कॉन्फ्रेंस के अवसर पर उन्होंने कहा था कि-मुझ पर जैन भाइयों की श्रीमद रायचंद हाशमहाकावामएफहकालनार का आत्मकथ्य::11

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