Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 11
________________ बखान विश्व इतिहास चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से करता है। भगवान महावीर के तत्त्वज्ञान और लोकोपकारिणी वाणी को जिन्होंने अक्षरों के माध्यम से अक्षय बनाया उन भगवान कुन्दकुन्द स्वामी की साधना-भूमि यही अंचल था। 'शौरसेनी प्राकृत' का नामकरण उनके इतिहास की किन यवनिकाओं के पार का आलोक है ? पूज्यपाद आचार्य नेमिचन्द्र, महामहिमामयी काललदेवी, वीरमार्तण्ड चामुण्डराय, दानशीला अक्कनदेवी तथा कला, सौन्दर्य, आत्म-साधना और त्याग की तेजस्वी मूर्ति पट्टमहादेवी शान्तला, सब अलग-अलग तथा अन्य अनेक-अनेक विभूतियाँ ऐसी हैं जिनका एक-एक नाम एक तीर्थ है। क्षेत्रकाल और इतिहास के प्रवाह का निर्माण संस्कृति के जिन उपादानों से यहाँ हआ है, वह यहाँ जीवन्त है। कर्नाटक में उनकी पहचान और परिचय ही इस पाँचवें भाग के प्रकाशन का उद्देश्य है । जिन परिस्थितियों से गुज़रकर इस भाग का प्रकाशन हो रहा है, और जो विशाल सामग्री अन्यत्र उपलब्ध है उसके परिप्रेक्ष्य में इसे एक ऐसा चित्राकार मानना चाहिए जिसके रंग एक झलक दिखा देते हैं। संस्कृति का रूप और श्रद्धा की सुरभि यदि पाठकों को इतना आकर्षित कर सके कि उनमें यात्रा की इच्छा जाग्रत हो जाय तो प्रारम्भिक प्रयत्न के रूप में यह प्रकाशन सार्थक होगा। दक्षिण की तीर्थयात्रा का अर्थ है वे तमाम जिनालय, बसदियाँ, मठ, मानस्तम्भ, शिलालेख, शास्त्र-भण्डार, गिरि-शृग, उपत्यकाएँ, गुफाएँ, प्रपात, कला-सौन्दर्य, भित्तिचित्र, शिल्पसाधना और उत्तंग मतियाँ जो 'जैनों' की ही नहीं, 'जनों की हैं। ऐसा चमत्कार और कहाँ मिलेगा! कहाँ है ऐसी भक्ति जो पारदर्शी हीरों और नगों की करोड़ों रुपयों की लघुकाय-सम्पदा में से छनकर छोटी-बड़ी रत्न-प्रतिमाओं का रूप ले रही है ? ___ अन्य भागों में क्षेत्रों का विभाजन भौगोलिक आधार पर, प्राचीन अंचलों के नाम पर निश्चित था। अतः प्रत्येक अंचल या जनपद का नक्शा देना आसान था। प्रदेशों का विस्तार बड़ा था। यहाँ हमने कर्नाटक के जैन तीर्थस्थलों का एक ही नक्शा दिया है जो बड़े आकार का है। तीर्थस्थलों के वर्णन-क्रम में यात्रा के मार्ग को ही प्रायः ध्यान में रखा है अतः ज़िले का विभाजन-क्रम कहीं-कहीं नहीं सध पाया है। फिर भी तीर्थस्थानों को जिला-क्रम से 'अनुक्रम' में दर्शाया गया है। आज चित्रों के प्रकाशन का जो स्तर कला-जगत् में है वह बहुत ऊँचा है। किन्तु उतना ही वह व्यय-साध्य है। ज्ञानपीठ के कलासंग्रह में जो चित्र उपलब्ध थे, मुख्य रूप से उन्हें ही माध्यम बनाया है । यदि वे उतने परिष्कृत नहीं लगते जितने नये चित्र, तो हस्तगत सामग्री का उपभोग और मूल्यवृद्धि को बचाना ही स्पष्ट उद्देश्य है। योजनानुसार इस ग्रन्थमाला का छठा भाग आयोजित है जिसका सम्बन्ध तमिलनाडु, आन्ध्र और केरल के तीर्थस्थानों से है । प्रयत्न होगा कि इस भाग की सामग्री का संयोजन जल्दी पूरा हो जाय, ताकि सम्पादन और मुद्रण के लिए पर्याप्त समय मिल सके। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की अध्यक्षता का दायित्व समाज ने साह अशोक कुमार जैन को सौंपा है। यह सौभाग्य की बात है कि उन जैसा कुशल और बड़ी-सेबड़ी योजनाओं को दूरदर्शिता तथा व्यावहारिक बुद्धि से चलाने वाला, धार्मिक निष्ठा से सम्पन्न व्यक्ति समाज को मिला है। दायित्व हाथ में लेते ही श्री साहू अशोककुमार जी तीर्थक्षेत्र

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