Book Title: Bhagwati sutram Part 03
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः२/
॥९५१॥
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३२ शतके व्याख्याते प्राक्शते व्याख्या, कृतैवास्य समत्वतः। एकत्र तोयचन्द्रे हि, दृष्टे दृष्टाः परेऽपि ते ॥॥१॥
उद्दे, २८
उद्वत्तेना सू द्वात्रिंशे शते नारकोद्वर्त्तनोक्ता, नारकाश्चोद्वत्ता एकेन्द्रियादिषु नोत्पद्यन्ते, के च ते ? इत्यस्यामाशङ्कायां ते प्ररूप- ८४१-८४२ यितव्या भवन्ति, तेषु चैकेन्द्रियास्तावत्प्ररूपणीया इत्येकेन्द्रियप्ररूपणपरं त्रयस्त्रिंशं शतं द्वादशावान्तरशतोपेतं व्याख्या- ३३ शतके यते, तस्य चेदमादिसूत्रम्
| अवान्तर
शत, १२ कतिविहा णं भंते! एगिदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा एगिंदिया प० तं०-पुढविक्काइया जाव वण-18in
उकेन्द्रियस्सइकाइया, पुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प०१, गोयमा! दुविहा प०२०-सुहमपुढविकाइया य बाय
भेदादि सू रपुढविकाइया य, सुहुमपुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प०१, गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्ता
८४३-८४८ सुहुमपुढविकाइया य अपजत्ता सुहुमपुढविकाइया य, बायरपुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प०, गो० एवं चेव, एवं आउकाइयावि चउक्कएणं भेदेणं भाणियबा एवं जाव वणस्सइकाइया । अपजत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ प०१, गोयमा! अट्ट कम्मप्पगडी पं०, तं०-नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, Pilm९५२॥ पज्जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओप०, गोयमा! अट्ट कम्मप्पगडीओ प०, तंजहा-नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । अपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ प०१, गोयमा! एवं चेव ८, पज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ एवं चेव ८, एवं एएणं कमेणं जाव बायर
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