Book Title: Bhagwati sutram Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 593
________________ म्मपगडीओ प०१, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ अणंतरोववन्नउद्देसओ तहेव जाव वेदेति, एवं एएणं अभिलावणं एक्कारसवि उद्देसगा तहेव भाणियवा जहा ओहियसए जाव अचरिमोत्ति ॥ छटुं एगिंदियसयं सम्मत्तं ॥६॥ [ग्रन्थाग्रम् १५०००] जहा कण्हलेस्सभवसिद्धिएहिं सयं भणियं एवं नीललेस्सभवसिद्धिए" हिवि सयं भाणियत्वं ॥ सत्तमं एगिंदियसयं सम्मत्तं ॥७॥ एवं काउलेस्सभवसिद्धीएहिवि सय ॥अट्ठमं एगिदियसयं सम्मत्तं ॥८॥कइविहा णं भंते! अभवसिद्धीया एगिंदिया प०१, गोयमा! पंचविहा अभवसिद्धिया०प०| तं०-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया एवं जहेव भवसिद्धीयसयं भणियं नवरं नव उद्देसगा चरमअचरमउद्देसगवजा सेसं तहेव ॥ नवमं एगिदियसयं सम्मत्तं ॥९॥ एवं कण्हलेस्सअभवसिद्धीयएगिदियसयंपि ॥ दसमं एगिदियसयं सम्मत्तं ॥१०॥ नीललेस्सअभवसिद्धीयएगिदिएहिवि सयं ॥ ११॥ काउलेस्सअभवसिद्धीयसयं, एवं चत्तारिवि अभवसिद्धीयसयाणि णव २ उद्देसगा भवंति, एवं एयाणि बारस एगिदियसयाणि भवंति ॥ (सूत्रं ८४९)॥ तेत्तीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ _ 'कइविहा णमित्यादि, 'चोद्दस कम्मपयडीओत्ति, तत्राष्टौ ज्ञानावरणादिकास्तदन्याः षट् तद्विशेषभूताः 'सोई दियवझं'ति श्रोत्रेन्द्रियं वयं-हननीयं यस्य तत्तथा मतिज्ञानावरणविशेष इत्यर्थः, एवमन्यान्यपि, स्पर्शनेन्द्रियवध्यं 8 तु तेषां नास्ति, तद्भावे एकेन्द्रियत्वहानिप्रसङ्गादिति। 'इत्थिवेयवज्झंति यदुदयात्स्त्रीवेदो न लभ्यते तत्स्त्रीवेदवध्यम् , एवं पुंवेदवध्यमपि, नपुंसकवेदवध्यं तु तेषां नास्ति नपुंसकवेदवर्तित्वादिति । शेष सूत्रसिद्धं, नवरम् ‘एवं दुपएणं भेदे Jain Education Inter nal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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