Book Title: Bhagwati sutram Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 632
________________ ४४० शतके सू. ८६५ दीरका एवेति । 'संचिट्ठणा जहन्नेणं एक समयंति, कृतयुग्मकृतयुग्मसज्ञिपञ्चेन्द्रियाणां जघन्येनावस्थितिरेक समयं व्याख्याप्रज्ञप्तिः समयानन्तरं सङ्ख्यान्तरसद्भावात् , 'उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगंति यत इतः परं सम्ज्ञिपञ्चेन्द्रिया न अभयदेवी- भवन्त्येवेति, 'छ समुग्घाया आइल्लग'त्ति सज्ञिपञ्चेन्द्रियाणामाद्याः षडेव समुद्घाता भवन्ति सप्तमस्तु केवलि-18 या वृत्तिः२ नामेव ते चानिन्द्रिया इति ॥ कृष्णलेश्याशते । कण्हलेस्सकडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उवव.?, तहेव जहा पढमुद्देसओ सन्नीणं, नवरं ॥९७३॥ ४ बन्धो वेओ उदयी उदीरणा लेस्सा बन्धगसन्ना कसायवेबंधगा य एयाणि जहा बेंदियाणं, कण्हलेस्साणं वेदो तिविहो अवेदगा नत्थि संचिट्ठणा जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमभहियाई एवं ठितीएवि नवरं ठितीए अंतोमुहुत्तमन्भहियाई न भन्नंति सेसं जहा एएसिं चेव पढमे उद्देसए जाव अणंतखुत्तो। एवं सोलससुवि जुम्मेसु । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ॥ पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उववजन्ति?, जहा सन्निपंचिंदियपढमसमयउद्देसए तहेव निरवसेसं नवरं ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा?, हंता कण्हलेस्सा सेसं तं चेव, एवं सोलसमुवि जुम्मसु । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ॥ एवं एएवि एक्कारसवि उद्देसगा कण्हलेस्ससए, पढमततियपंचमा सरिसगमा सेसा अट्ठवि एक्कगमा । || सेवं भंते ! सेवं भंते! ति ॥ बितियं सयं सम्मत्तं ॥२॥ एवं नीललेस्सेसुवि सयं, नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेजइभागमभहियाई, एवं ठितीए, एवं तिसु । ॥९७३॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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