Book Title: Bhagwati sutram Part 03
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
View full book text
________________
३५ शतके उद्दे. प्रथमसम
यायेकेन्द्रियाःसू ८५७-८५८
व्याख्या
जंति? जहा पढमसमयउद्देसो तहेव भाणियो। सेवं भंते! २त्ति ॥ ३५॥७॥ पढमचरमसमयकडजुम्म २. प्रज्ञप्तिः एगिदिया णं भंते! कओ उववजंति?, जहा चरमुद्देसओ तहेव निरवसेसं । सेवं भंते! २त्ति ॥ ३५॥८॥ अभयदेवी- पढमअचरमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते! कओ उवव०?, जहा बीओ उद्देसओ तहेव निरवसेसं । या वृत्तिःश सेवं भंते!२त्ति जाव विहरइ ॥ ३५॥९॥ चरमरसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते ! कओ उवव०१, जहा
चउत्थो उद्देसओ तहेव ? सेवं भंते सेवं भंते! त्ति ॥३५॥१०॥ चरमअचरमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते !
कओ उवव०?, जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! २ जाव विहरति ॥३५॥११॥ एवं एए दू एक्कारस उद्देसगा, पढमो ततिओ पंचमओ य सरिसगमा सेसा अट्ट सरिसगमगा, नवरं चउत्थे छठे अट्टमे | दसमे य देवा न उववजंति तेउलेस्सा नत्थि॥३५॥ (सूत्रं ८५८)॥ पढमं एगिदियमहाजुम्मसयं सम्मत्तं ॥१॥ _ 'पढमसमयकडजुम्मरएगिदिय'त्ति, एकेन्द्रियत्वेनोत्पत्तौ प्रथमः समयो येषां ते तथा ते च ते कृतयुग्मकृतयु|ग्माश्चेति प्रथमसमयकृतयुग्मकृतयुग्मास्ते च ते एकेन्द्रियाश्चेति समासोऽतस्ते 'सोलसखुत्तो'त्ति पोडशकृत्वः-पूर्वोतान् पोडश राशिभेदानाश्रित्येत्यर्थः, 'नाणत्ताई'ति पूर्वोक्तस्य विलक्षणत्वस्थानानि, ये पूर्वोक्ता भावास्ते केचित् प्रथमसमयोत्पन्नानां न संभवन्तीतिकृत्वा, तत्रावगाहनाघोदेशके बादरवनस्पत्यपेक्षया महत्युक्ताऽभूत् इह तु प्रथमसमयोत्प|न्नत्वेन साऽल्पेति नानात्वम् , एवमन्यान्यपि स्वधियोह्यानीति ॥ पंचत्रिंशे शते द्वितीयः॥ ३५॥२॥ तृतीयोद्देशके तु| 'अपढमसमयकडजुम्मरएगिंदिय'त्ति, इहाप्रथमः समयो येषामेकेन्द्रियत्वेनोत्पन्नानां ध्यादयः समयाः, विग्रहश्च |
RAMERAMMASALARG
॥९६८॥
dain Education International
For Personal & Private Use Only
www.janelibrary.org

Page Navigation
1 ... 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654