Book Title: Bhagwati sutram Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 594
________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः२ एणं'ति अनन्तरोपपन्नकानामेकेन्द्रियाणां पर्याप्तकापर्याप्तकभेदयोरभावेन चतुर्विधभेदस्यासम्भवाद् द्विपदेन भेदेनेत्युक्तम् । तथा 'चरमअचरमउद्देसगवज्जति, अभवसिद्धिकानामचरमत्वेन चरमाचरमविभागो नास्तीतिकृत्वति ॥ त्रयस्त्रिंशं शतं वृत्तितः समाप्तमिति ॥ ३३ ॥ व्याख्येयमिह स्तोकं स्तोका व्याख्या तदस्य विहितेयम् । न ह्योदनमात्रायामतिमात्रं व्यञ्जनं युक्तम् ॥ १॥ ३४ शतके १२ अवांएकेन्द्रिय विग्रहादि सू ८५० ॥९५४॥ त्रयस्त्रिंशशते एकेन्द्रियाः प्ररूपिताश्चतुस्त्रिंशच्छतेऽपि भङ्गयन्तरेण त एव प्ररूप्यन्ते इत्येवंसंबन्धेनायातस्य च द्वादशशतोपेतस्यास्येदमादिसूत्रम्___ कइविहा णं भंते! एगिदिया प०?, गोयमा! पंचविहा एगिदिया प० तं०-पुढविक्काइया जाव वणस्सइ|| काइया, एवं एतेणं चेव चउक्कएणं भेदेणं भाणियवा जाव वणस्सइकाइया, अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहइत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए, सेणं भंते ! कइसमएणं विग्गणं उववजेज्जा?, गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेजा, से केण?णं भत! एवं वुच्चइ एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववजेजा?, एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ प०, तं०उज्जुयायता सेढी एगयओवंका दुहओवंका एगयओखहा दुहओखहा चकवाला अद्धचक्कवाला ७, उजु ॥९५४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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