Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 515
________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श. ९ उ ३३ सू. ८ जमा लिवक्तव्यनिरूपणम् ४९७ वेदमिति कृतनिश्चयस्य, व्यवसितस्य उपायत्तस्य पुरुषस्य नो खलु अत्र प्रवचने लोके वा किश्चिदपि दुष्करम् अशक्यम् , दुष्करत्वं च ज्ञानोपदेशापेक्षयापि स्यादत आह-करणतया, करणेन संयमस्य अनुष्ठानेनेत्यर्थः, तं इच्छामि गं अम्मताओ ! तुम्भेहिं अभणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए ' हे अम्बतातौ ! तत् इच्छामि खलु युष्माभिरभ्यनुज्ञातः आज्ञप्तः सन् श्रमणस्य भगवतो महावीरस्प यावत् अन्ति के मुण्डो भूत्वा आगारात् अनगारितां पत्रजितुम् । ' तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं भन्मापियरो जाहे नो संचाएंति, कार्य अवश्यही करना है-ऐसे दृढ निश्चयवाले हैं और निश्चित कर्तव्यको सफलित करनेवाले उपायों में जिन्हों की प्रवृत्ति चालू हो चुकी है ऐसे पुरुषको इस प्रवचन- अथवा लोकमें करनेकी अपेक्षा कुछ भी दुष्कर नहीं है 'करणतया ' ऐला जो पदप्रयोग किया है, वह ज्ञानोपदेशकी अपेक्षा दुष्करताकी निवृत्ति करने के लिये किया गया है। करणताका तात्पर्य संयमके अनुष्ठानसे है । ऐसे पूर्वक्ति मनुष्यके लिये जिन प्रवचनोक्त संयमका अनुष्ठान करना दुष्कर नहीं है। भलेही उसे ज्ञानोएदेश करनेरूप अनुष्ठान दुष्कर हो. 'तं इच्छामि णं अम्मताओ तुम्भेहिं अन्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पचइत्तए' इसलिये हे मात तान! मैं आपले आज्ञा प्राप्त करके श्रमण भगवान् महावीरके पास मुण्डिन होकर अगारावस्थाको छोड़ करके अनगारी આ કાર્ય અવશ્ય કરવું જ છે”, આ પ્રકારના દૃઢ નિશ્ચયવાળા છે, અને નિશ્ચિત કર્તવ્યને સફળ કરવાને માટે પ્રયત્નશીલ હોય છે, તે લેકેને માટે નિથ પ્રવચને કા ચારિત્રની આરાધના કરવા નું કાર્ય બિલકુલ મુશ્કેલ નથી. " करणतया" मा पहना रे प्रयोग ४२i H०ये। छे ज्ञानापरेशानी अपेक्षा से दु०४२तानी निवृत्तिने भाटे ४२वामा माया छ “ करणतो " सटवे સંયમનું અનુષ્ઠાન, એ અર્થ અહીં સમજો કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે સાહસિક, દઢનિશ્ચયી અને પ્રયત્નશીલ માણસને માટે જિન પ્રવચક્ત સંયમનું અનુષ્ઠાન દુષ્કર નથી ભલે જ્ઞાનોપદેશ કરવા રૂપ અનુષ્ઠાન તેને માટે दुः४२ डाय, ५ सयभनी भाराध। ४२वातुं । ०४२ नथी 'त' इच्छोमि णं अम्मताओ ! तुम्भेहि अभणुन्नाए समाणे खमणास भगवओ महावीर जाव पव्वइत्तए" तेथी के मातापित ! मापनी मनुमति नई श्रम भगवान મહાવીરની પાસે મુંડિત થઈને અમારાવસ્થા છેડીને અણગારાવસ્થા ધારણ કરવા માગું છું. भ९-६३

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