Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 626
________________ ६०८ भगवतीस्त्रे नामोधानात् पतिनिष्क्रामति निर्गच्छति, ' पडिनिक्वमित्ता पूवाणुपुब्धि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे' कोष्ठकचत्यात् प्रतिनिप्जस्य निर्गम्य पूर्वानुपूर्व्या अनुक्रमेण चरन विचरन् ग्रामानुग्रामं प्रामाद नामान्तरं द्रवन् व्यतित्रजन् 'जेणेव चंपायरी, जेणेव पुण्णभदे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ' यत्रैव चम्पानाम नगरी आसीत् , यौन पूर्णभद्र नाम चैत्यमासीत् , यत्रैत्र श्रमणो भगवान् महावीर आसीत् तत्रैव उपागच्छति, ' उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिचा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी'उपागत्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अदूरसामन्ते-नातिदूरे नाति प्रत्यासन्ने उचितस्थाने स्थित्वा-उपविश्य श्रमणं भगवन्तं महावीरम् एवं वक्ष्यमाणप्रका. रेण अबादीत्-'जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंधा छउ. मत्था भवेता छ उमत्थावकमणेगं अवकंता' हे भदन्त ! यथा खल्लु देवानुमियाणां और बलयुक्त हो जाने पर वे श्रावस्ती नगरी और कोष्टक चैत्यसेउद्यानसे निकले 'पडिनिकखमित्ता पुव्वाणुपुर्दिव चरमाणे गामाणुगाम दूरज्जमाणे ' निकल कर अनुक्रमसे एक गांवसे दूसरे गांवमें विहार करते ए वे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेहए, जेणेव समणे अगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह ' वहां आये जहां वह चंपा नगरी थी जहाँ वह पूर्णभद्र उद्यान था एवं जहां वे श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे ' उवागच्छित्ता समणस्स भगवओं महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महाबीरं एवं वयानी' वहां आकरके वे श्रमण भगवान के न अति समीप न अति दूर-किन्तु अपने योग्य उचित स्थान पर पास खडे हो गये और इस प्रकारसे कहने लगे 'जहाणं देवाणुप्पियाणं यहवे अन्तेवाली समणा निग्गंथा छउमत्था उद्यानमाया विडार ४ये. " पहिनिक्खमित्ता पुवाणुपुचि चरमाणे गोमाणुगामं दइज्जमाणे" ४४ Gधानमाथी नीजान मश: से गामथा भार शाम विडार ४२di Rai | “ जेणेव चपा नयरी जेणेव पुण्णभई चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे वेणेव उबागच्छद" orयां या नगरी ती, यां - ભઢ ઐય હતું અને તે ચૈત્યમાં જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર બિરાજતા ता. त्या माव्या, “ उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगव महावीरं एवं वयासी" त्या भावाने तेसो श्रम ससવાનની બહુ પાસે પણ નહીં અને બ૬ દૂર પણ નહીં એવું ઉચિત સ્થાને AL Rन भने २ प्रमाणे ४ा amil. "जहाणं देवाणुप्पियाणं बहवे

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