Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 646
________________ ६५८ भगवतीमत्र किब्धिसिया पण्णता' हे गौतम ! त्रिविधाः देवकिल्विपिकाः प्राप्ताः, 'तंजहातिपलिओचममहिइया, तिसागरोबमहिइया, तेरससागरोवमद्विया' तद्यथा त्रिपल्योपमस्थितिकाः, निसागरोपमस्थितिकाः, प्रयोदशसागरोपमस्थितिकाः भवन्ति । गौतमः पृच्छति- कहि णं भंते ! तिपलिश्रोवमहिइया देवकिन्विसिया परिवसंति ?' हे भदन्त ! कुत्र खलु स्थाने त्रिपल्योपमस्थितिकाः त्रिपल्योपमा स्थिति येषां ते त्रिपल्योरमस्थितिकाः देवकिल्विपिकाः परिवसन्ति ? निवसन्ति ? भगवानाह-गोयमा ! उपि जोइसियाणं हिदि सोहम्मीसाणेस कप्पेस एत्य ण तिपलिओवमटिइया देवफिविसिया परिवसंति ' हे गौतम ! उपरि ज्योतिषिकाणाम् ज्योतिपिकदेवेभ्यः ऊर्ध्वम् अधस्तात् सौधर्मेशानयोः कल्पयोः सौधर्मशानदेवलोकाभ्यामधः अत्र खलु स्थाने त्रिपल्योपमस्थितिकाः देवकिल्विपिकाः हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहादेवकिचिसिया पगत्ता' देवकिल्विषिक तीन प्रकारके कहे गये हैं ' तं जहो' वे ये हैं-'तिपलिओवमद्विइया, तिसागरोवमहिया, तेरससागरोवमहिइया' एक तीन पल्योपमकी स्थितियाले, दूसरे तीन सागरोपमकी स्थितियाले, तीसरे १३ सागरोपमकी स्थितिवाले, अथ गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'कहिं णं भंते । तिपलिभोवमष्ठिस्या देवकिपिसिया परिवसंति' हे भदंत ! जिन देवकिल्पिषिकोंकी स्थिति तीन पल्योपमकी है वे देवकिल्पिषिक कहाँ रहते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं-' गोयसा इपि जोहसियाणं, हिडिं. सोहम्मीसाणेस्तु कप्पेसु एत्य णं निपलिओवमट्टिया देवकिब्धिसियापरिवसंति' हे गौतम ! ज्योतिषिक देवोंसे ऊपर तथा सौधर्म ईशान इन दो कल्पोंसे नीचे ठीक इसी स्थान पर तीन पल्योपमकी स्थितिवाले महावीर प्रभुने। उत्तर-“ गोयमा" गीतम! “तिविहा देवकिठिव. सिया पण्णत्ता" निषि वो न अपना द्या " तजहा" ते त्रय ४२ मा प्रमाणे छे-“ तिपछिओवमद्विइया, तिसागरोवमद्विइया, तेरससागरोवमद्विइया ” (१) र पक्ष्योपमनी स्थितिवाणा, ત્રણ સાગરોપમની સ્થિતિવાળા, (૩) તેર સાગરોપમની સ્થિતિવાળા. गौतम स्वाभान प्रश्न-“कहि णं भंते ! तिपलिओवमद्विइया देवकिवि सिया परिवसंति ?" महन्त ! विषि: वोनी स्थिति (मायुष्या) ત્રણ પાપમનો હોય છે, તે કિવિષિક દેવ કયાં રહે છે ? । महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" गौतम ! " उपि जोइसियार्ण हिदि सोहम्मीसाणेसु कप्पेमु एत्य ण तिपलिओवमदिइया देवकिविमिया परिवसति" ત્રણ પામની સ્થિતિવાળા કિવિષિક દે તિષિક દેના નિવાસસ્થાન ઉપર અને સૌધર્મ તથા ઇશાન કલ્પ ( ક) ના ના રહે છે.

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