Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 652
________________ भगवतीसूबे. चत्तारि पंचनेरइयतिरिक्वजोणियमणुस्सदेवभग्गहणाई संसारं अणुपरिय. हिता, तो पच्छा सिझति, बुझंति, जाव अंतं करेति ' हे गौतम ! यावत् एकं, द्वे, त्रीणि, चत्वारि, पञ्च नैरपिकतिर्यग्योनिझमनुष्यदेवभवग्रहणानि एतावद्रूपं संसारम् अनुपर्यटय-परिप्रभ्य ततः पश्चात् तदनन्तरं सिध्यन्ति, बुध्यन्ते, यावत् मुच्यन्ते. परिनिर्वान्ति, सर्वदुःखानाम् अन्त कुर्वन्ति । ' अत्थेगया अणादीयं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरंतसंसारकनार अणुपरियटृति ' अस्त्येकके केचन जीवाः अनादिकम्-आदिरहितम् , अनवदग्रम्-अपर्यवसानम् , दीर्घाध्यानम् निगोदापेक्षया अत्यन्तदूराधानम् , चातुर्गतिक संसारकान्तारं भवाटवीम् अनु. पर्यटन्ति-परिभ्रमन्ति, गौतमः पृच्छति-'जमालीणं भंते ! अणगारे, अरसाहारे, प्रश्न के उत्तरमें प्रभु कहते हैं- गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरझ्य तिरिक्ख जोणियमणुस्तदेव भजग्गहणाइं संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा लिझंति, धुझंनि, जाव अंतं करेंति' हे गौतम ! नैरपिक, तिथंग्योनिक, मनुष्य और देव इनके ४ चार अवग्रहण करने तक या पांच भवग्रहण करने तक संसार में रहते हैं-इसके बाद वे सिद्ध हो जाते हैं, बुद्ध बन जाते हैं, यावत् मुक्त हो जाते हैं, परिनिर्वातशीतलीभूत-हो जाते हैं एवं सर्व दुःखों का अंत कर देते हैं । 'अत्यंगइथा अणादीयं अणवदग्गंदीए सद्धं चाउरंत संसारकतारं अणुपरियति' तथा कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं जो आदि रहित, अन्तरहित, निगोद की अपेक्षा बहुत विकट मार्गयुक्त ऐसे चातुर्गतिक संसाररूप गहनवन से परिभ्रमण करते रहते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछतेहैं भडावीर प्रभुने। उत्तर-" गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरइयतिरिक्त जोणियमणुस्सदेवभवग्गणाई ससार अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिझंति, मुमति, जाव भत करें ति" है गौतम ! तशा नेथि, तिय ययानि, મનુષ્ય અને દેવગતિના ચાર અથવા પાંચ ભવ ગ્રહેણ સુધી સંસારમાં ભ્રમણ કરે છે, ત્યાર બાદ તેઓ સિદ્ધ થઈ જાય છે, બુદ્ધ થઈ જાય છે, મુક્ત થઈ જાય છે, પરિનિર્વાત (સમરત શારીરિક અને માનસિક પરિતાપથી રહિત) २ लय छ भने समस्त मानो सपथा क्षय ४३री नामे छ. " अत्थेगइया अणादीयं अणवद्गगं दीहमद्धं चाउर तसंसारकतार', अणुपरियति " तथा 2. લાક દ્વિષિક દે તે કિવિષિક દેવ પર્યાયમાંથી નીકળીને અનાદિ, અનંત નિગોદની અપેક્ષાએ અતિશય વિકટ માગયુક્ત એવા ચાર ગતિવાળા સંસાર; રૂપી ગહન વનમાં ભ્રમણ કર્યા કરે છે.

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