Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 637
________________ ६१६ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०९४०३३० १४ जमालेः कालधर्मगमनम् सेन निष्पाद्यया संलेखनया शरीरशोषणरूपया आत्मानं स्वशरीरं जूषयतिकृशति क्षीणं करोतीत्यर्थः ' झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ ' अर्द्धमासिक्या संलेखनया आत्मानं जूषित्वा कृश कृत्वा त्रिंशत् भक्तानि अनशनतया अनशनेन छिनत्ति, 'छेदेता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा ' - त्रिंशद् भक्तानि अनशनेन छित्वा तस्य स्थानस्य अनालोचितमतिक्रान्तः - अकृतालोचनप्रतिक्रमणः आलोचनप्रतिक्रमणमकृत्वा कालमासे कालं कृस्वा 'लंतए कप्पे तेरससागरोवममहिइएस देवकिव्विसिएस देवे देवकिव्विसिrain उववन्ने' लान्तके कल्पे विमाने त्रयोदशसागरोपमस्थितिकेषु त्रयोदशसागरोपमा स्थितिर्यत्र तेषु देवकिल्विषिकेषु देवयोनिषु देवकिल्विपिकतया देवकिल्विषकरूपेण उत्पन्नः ॥ सू० १४ ॥ ' पाउणित्ता अद्धमासियाए सलेहणाए अत्ताणं झूसेह' जब उसका अन्त समय नजदीक आ गया, तब उसने अर्द्ध मासकी संलेखना धारण की, इससे उसने अपने शरीरको कृश किया अर्थात् संथारा किया 'झूसेत्ता तीस' भत्ताई अणसणाए छेदेह ' कृश करके तीस भक्तोंको उसने अनशन द्वारा छेद दिया 'छेदेत्ता तस्ल ठाणस्स अणालोइ पडते कालमासे कालं किच्चा ' छेद करके वह विना पूर्व पापस्थानोंकी आलोचना और प्रतिक्रमण किये काल अवसर काल कर और 'लंतए कप्पे तेरससागरोवमठिहए देवकिञ्चिसिएस देवेसु देवकिन्वसियत्ताए उववन्ने' वह लान्तक विमानमें १३ तेरह सागरोपमकी स्थिति वाले किल्विषक देवों में देव योनिमें- किल्विषक देवकी पर्याय से उत्पन्न हो गया । सू० १४ ॥ - पर्यायनुः- पालन यु" - " पाणित्ता अद्धमाखियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेई ત્યાર બાદ જ્યારે તેના અન્તકાળ નજદીક આવ્યા ત્યારે તેણે અર્ધા માંસને સચારા ધારણ કર્યા. અને સ થારા દ્વારા તેણે પેાતાના શરીરને કૃશ કરી नायुं, “झुंसेत्ता तीसं भत्ताइ अणसण.प छेदेइ " शरीरने देश असे नामीने તેણે અનશન દ્વારા - ત્રીસ ભક્તોનુ' ( ત્રીસ ટ'કના લેાજનનુ' ) છેદન કરી नायुं. "छेदिता तर ठाणेस्व अगालोश्यपडिक्कंते कालमासे- कालं किचा " ત્રીસ ભક્તોના પરિત્યાગ કરવા છતાં પણ પેતાના પૂર્વ પાપસ્થાનાની આલા ચના અને પ્રતિક્રમણ કર્યા વિના, કાળના અવસર આવતા કાળધમ પામીને "लंतए कप्पे तेरस सागरोवम ठेइएस देवकिव्विसिएस देवेसु देव किव्विसिय " are a " ते बान्त विमानमा, १३ सागरे।भनी स्थितिवाजा डिवि द्वेवैाभां-देव-योनिमां-द्विविषि हेवनी पर्यायै उत्पन्न थय ॥२०१४ ॥ r

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