Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 643
________________ प्रवद्रिकाटीका श०९४०३३०९६ देववि विपिन भेदनिरूपणम् ६२५ परिवसति । देव विव्त्रिसियाणं अंते ! केसु कम्मादाणेसु देवकिब्बिसियत्ताए उववन्तारो भवंति ? गोयमा जे इसे जीवा आयरीयपडिणीया उवज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया संघपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अयसकरा अवनकरा अकित्तिक बहूहिं असम्भावुभावणाहिं सिच्छत्ताभिनिवेसेहिय अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गा हेमाणा बुप्पाएमाणा बहु वासाई सामन्नपरियागं पाडणंति, पाउणित्ता तरस ठाणस्स अणालोइयपडिते कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवकिव्त्रिसिएस देव किव्विसियत्ताए उववत्तारो भवति, तं जहा तिपलिओमहिइएस वा, तिसागरोवमट्ठिइसु वा, तेरस - सागरोवमट्टिसु वा । देवकिव्विसियाणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खणं भवक्खणं ठिइक्खणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छति, कहिं उववजंति ? गोयमा ! जाव चत्तारि पंचनेरइय तिरिक्खजोणिय मणुस्सदेव भवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झंति, बुज्झंति, जाव अंत करेंति, अत्थेगइया अणादीयं अणवदग्गं दहिमदं बाउरंत संसारकंतारं अणुपरियद्वंति । जमाली णं अंते ! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी, विरसजीवी जाव तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विचित्तजीवी ? हंता, गोयमा जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी । जइणं भंते ! जमाली भ०-७९

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