Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीकाश०९३ ३३ सू०१३ महावीरवाक्यं प्रति जमालेरश्रद्धानि० १०३ क्खमित्ता पुवाणुपुचि चरमाणा गामाणुगाम दूइज्जमाणा'प्रतिनिष्क्रम्य कोष्ठकनामचैत्याभिर्गत्य,उद्यानान्नित्य पूर्वानुपूया अनुक्रमेण,ग्रामानुग्रामं ग्रामाद ग्रामान्तरं द्रवन्तः व्यतिव्रजन्तः 'जेणेच चंपानयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए,जेणेव समणे भगवं महा. बीरे,तेणेव वागच्छति' यत्रैव चम्पानाम्नी नगरी, यत्रैव पूर्णभद्रं नाम चैत्यम्-उधानम् यत्र श्रमणो भगवान् महावीर आसीत्-तत्रव उपागच्छन्ति,'उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति' उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीर विकृत्वः त्रिवारम् आदक्षिणप्रदक्षिणं कुर्वन्ति, 'करेत्ता बंदंति, णमं. संति, वंचित्ता, नमंसित्ता समणं भगवं महावीर उपसंपज्जित्ताणं विदरंति' आदक्षिणप्रदक्षिणं कृत्वा चन्दन्ते, नमस्यन्ति, वन्दित्वा, नमस्थित्या श्रमणं भगवन्तं महावीरम् उपसंपद्य-आश्रित्य खलु विहरन्ति ॥ सू० १३॥
आये-चले आये 'पडिनिक्खभित्ता पुन्छाणुपुर्विध चरमाणा गामाणु. गामं दूइज्जमाणा' चले आ करके अनुक्रमले एक गांवसे दूसरे गांवमें विहार करते २ 'जेणेव चंपा नघरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति' जहां चपा नगरी और उसमें भी जहाँ वह पूर्णभद्र उद्यान तथा उसमें भी जहाँ ब्रमण अग. वान् महावीर विराजमान थे, वहां पर आये 'उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करें ति' वहां आ करके उन्होंने श्रमण भगवान महावीरको तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा 'करेत्ता वदति णमंतंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणं भगवं महावीर उपसंपज्जित्ता णं विहरति 'आदक्षिण प्रदक्षिण करके श्रमण भगवान् महावीर को उन्होंने वंदना की-नमस्कार किया, बन्दना नमस्कार करके 'वे महावीर के पास रहे ।। सू०१३ ।।
" पडिनिकम्वमित्ता पुव्वाणुयुधि घरमाणा गामाणुगाम दूइज्जमाणा" त्यांची नजाने मनु मे ४ ॥ मथी मार ॥ विडार ४२i ४२di “ जेणेव चपा नयरी जेणेव पुण्णभदे चेइए जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति" તેઓ જ્યાં ચંપા નગરી હતી તેમાં જયાં પૂર્ણભદ્ર ચૌત્ય હતું અને તે
त्यमा या महावीर प्रभु मिशता त त्यो माया. "उवागच्छित्तो समणं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिण' करे ति” त्यां मावीन तभी श्रम भगवान महावीरने वा२ माक्षम प्रक्षिपूर्व " करेत्ता वदति णमंति, व दित्ता णमंसित्ता संमण भगव महावीर' उपसपजित्तोणं विहरति" વંદણ કરી અને નમસ્કામ કર્યા. વંદણા નમસ્કાર કરીને તેઓ શ્રમણ ભગ* વાન મહાવીરની પાસે તેમની આજ્ઞાનુસાર વિચારવા લાગ્યા. . ૧૩

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