Book Title: Bhagwati Sutra Part 08
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 620
________________ . .. भगवतीसरे . "तस्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमह सद्दईति, पत्तियंति, रोयंति, तेण जमालि चे। अणगारं उपसंपज्जित्ताणं विहरंति' तत्रखलु तेषु श्रमणेषु ये ते श्रमगा निग्रन्था जमालेरनगारस्य एतमर्थ क्रियमाणं वस्तु कृतं न भवति" इलायथं श्रद्दधति-प्रतियन्ति-विश्वसन्ति, रोचयन्ति रुचित्रिपयं कुर्वन्ति, तेषु जमालिमेव अनगारम् उपसम्पद्य खलु विहरन्तितिष्ठन्ति, 'तत्य जे ते समगा निगंया जमालिस अणगारस्स एयमढ णो सदहति णो पत्तियंति, णो रोयंति, तेणं जनालिरप्त अणगारस्त अंतियाओ चेइ. याओ पडिणिकाखमंति' तत्र खलु श्रम गानां निग्रन्थानां मध्ये ये श्रमणानिन्थाः जमालेरनगारस्य एतमर्थ पूर्वोक्तार्थ नो श्रदधति, नो प्रतियन्ति विश्वसन्ति, नो रोचयन्ति रुचिविपयं कुर्वन्ति, ते खल्ल जमालेग्नगारस्य अन्तिकोत् समीपात् कोष्ठकात् कोष्ठकनाम्नश्चत्या उद्यानात् मतिनिष्क्रामन्ति-निर्गच्छन्ति, 'पडिणिअर्थ जार में प्रकट किया जा चुका है। 'तत्थगं जे ते समणा निग्गंधा 'जमालिस अणगारस्त एयल सटहति, पत्तियंति, रोयति, ते णं जमालि चेय अणगारं उपसंपजित्ताणं विहरंति' इस तरह जमालि अनगारके साथ के पांचसौ साधुओंमें जो जमालि अनगारके क्रियमाणकृत नहीं होता इस लन्तव्य पर श्रद्धापाले, प्रतीतिवाले एवं रुचिवाले बन गये वे साधु जमालिके पासही रहे और 'तत्य णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्त एपमह नो सबहंति णो पत्तियंति, णो रोयंति, तेणं जमालिरुल अणगारस्त अंतियाओ कोहाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति' जो श्रमण निन्ध जमालि अनगारके क्रियमाण वस्तु कृत नहीं होती है, इस सन्तव्य पर अद्भावाले, प्रतीनिवाले, एवं रुचिघाले नहीं बने दे उसके पास से और उस कोष्ठक उद्यानसे निकल “तत्थणं जे ते समणा निगंथा जमालिस्म अणगारस्म एयम सहहंति, पत्तियंति, रोयंति, ते णं जमालि चेव अणगार उबसपज्जित्ताणं विहरति " - જમાલી અણગાર સાથે જે ૫૦૦ સાધુઓ હતા, તેમાંથી જે સાધુઓને જમાવી અણગારના મતવ્ય ( કિયમાણુ અકૃત થાય છે એવું પૂર્વોક્ત મન્તવ્ય) પ્રત્યે શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ, તે મતવ્યની પ્રતીતિ થઈ ગઈ અને તે મન્તવ્ય यी गयु, त मासी मगारनी पासे । २. ५२न्तु " तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस अणगारस्म एयम नो सह ति, णा रोय'ति, ते णं जमालिस्त्र अणगारस जतियाओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति" रे भएर નિથાને જમાલી આ ગુગારના તે મન્તવ્ય પ્રત્યે શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન ન થઈ તે મન્તવ્યની જે મને પ્રતીતિ ન થઈ અને જેમને તે મન્તવ્ય રુચ્યું નહીં તેઓ જમાલી અણુગાર પાસેથી અને તે કેક ઉદ્યાનમાંથી ચાલી નીકળ્યા

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