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के लिए मुझ क्षमा किया जाए और ससूचित कर दिया जाए ताकि भविष्य मे पुस्तक के द्वितीय सस्करण मे उन का सशोधन कर दिया जाए।
अन्त मे,उन विद्वान लेखको का मैं हृदय से आभार मानता ह, जिनको लिखी पुस्तको से सहायता लेकर इस पुस्तक को लिखा गया है। तया श्रद्धेष पण्डित-प्रवर श्री स्वामी हेमचन्द्र जी महाराज का भी मैं हृदय से कृतज्ञ हूं, जिन्होने इस पुस्तक का सगोधन किया है, और पग-पग पर सहयोग देकर इस पुस्तक को अधिकाधिक उपयोगी बनाने का अनुग्रह किया
जैनस्थानक, लुधियाना । २००७, भाद्रपद शुक्ला १५)
-ज्ञानमुनि
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