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वे इन प्रश्नो का समाधान करेंगे। साराश यह है कि आज जैनो मे सैद्धान्तिक जानकारी की शोचनीय कमी हो गई है। इसके जहा अन्य अनेकों कारण हैं, वहा एक कारण साहित्य का अभाव भी है। जैन सिद्धान्तो को सुन्दर ढग से उपस्थित करने वाले सत्साहित्य की आज बहुत न्यूनता है। इस न्यूनता से जण्डियालागुरु के युवक भी खेदखिन्न थे। अन्त मे उन्होने मुझे इस दिशा मे प्रयत्न करने की जोरदार प्रेरणा की, और सानुरोध निवेदन किया कि जेनदर्शन के सैद्धान्तिक तथ्यो पर प्रकाश डालने वाली किसी पुस्तक को रचना अवश्य की जानी चाहिए। धर्मस्नेही श्री विद्यासागर जी (सुपुत्र सेठ खजाची लाल जो प्रो० श्री आत्माराम गण्डामल जेन, जण्डियाला गुरु) ने तो यहा तक कह दिया कि आप इस पुस्तक को तैयार करो मैं इसे प्रकाशित करवा दूगा। युवको को इस बात में सामाजिकता थी, धार्मिक स्नेह था, और साहित्य के अभाव के कारण युवको मे हो रहे सैद्धान्तिक वोध के तास के लिए समवेदना थी। मेरे भी मन मे आया, कि युवको की बात तो ठीक ही है । जव पाठ्य पुस्तक ही नही होगी, तब ये लोग सीखेगे कहा से ? कैसे स्वाध्याय कर सकेगे ? अन्त मे मैंने निश्चय कर लिया कि इस दिशा में अवश्य यत्न करना चाहिए।
विहार मे लिखने-पढने का कार्य कठिन हो जाता है, . तथापि मैंने पुस्तक को लिखना चालू कर दिया। धीरे-धीरे प्रयत्न चलता रहा । आखिरकार लुधियाना मे श्रद्धेय गुरुदेव, जैनधर्म-दिवाकर, आचार्यसम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के चरणों के प्रताप से मेरा यह प्रयत्न सफल