Book Title: Avashyak Niryukti Part 02
Author(s): Punyakirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashan
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आ.नि.
आवश्यक- __ पजवकाओ पुण होइ, पजवा जत्थ पिंडिया बहवे । परमाणुंमिविकंमिवि, जह वनाई अणंताओ ।।१४४३।। * नियुक्तिः * यत्र चित्रपटादौ परमाणावपि कस्मिंश्चित्सांव्यवहारिके वर्णादयः परापेक्षया शुभ्रशुभ्रतरत्वादयोऽनन्ताः पिण्डिताः सन्ति स पर्यायकायः * कायोत्सर्गाश्रीतिलकाचार्य-*॥१४४३।। भारकायमाह -
ध्ययनम्
कायोत्सर्ग लघुवृत्तिः * एक्को काओ दुहा, जाओ एक्को चिट्ठइ इक्कु मारिओ । जीवंतो मएण मा, रिओ तं लव माणव ! केण हेउणा ? ।।१४४४।।
निक्षेपाः (१) * एकः क्षीरकायः द्विधा जातो घटद्वये न्यासात् । एकस्तिष्ठति, एक: पतन्मारितो भग्नः । जीवन्मृतेन मारित: । एकेन पतता द्वितीयोऽपि नामादिकाय १००० पातितो भग्नः । ततो 'लप' ब्रूहि मानव केन हेतुना । कथा चात्रार्थे प्रतिक्रमणाध्ययने परिहरणायामस्ति । भारकायश्चात्र क्षीरभृतकुम्भद्वयोपेता * निक्षेपाः। *काययष्टिः ।।१४४४।। भावकायमाह -
गाथा-१४४३१४४४
業紧紧紧紧紧紧靠靠靠靠靠靠靠:
ॐ परमाणो कस्मिन्नपि वर्णादयोऽनन्तगुणाः स्युस्तकस्मिन्नणावेको रस एको वर्ण एको गन्धो द्वौ शीतखराद्यो स्पर्शा स्युः, परमन्यापेक्षया तिक्ततिक्ततरतिक्ततमाघनन्तगुणरसत्वं
प्रपद्यते, यतो अन्यरसोऽणुस्तदपेक्षया स तिक्तरसः, पश्चान्यः स्तोकतिक्तरसोऽणुस्तदपेक्षया स बहुतिक्तरसः यशान्योऽल्पतरतिक्तरसस्तदपेक्षया स बहुतरतिक्तः । एवं * *वर्णादिभिरष्यन्यापेक्षमनन्तपर्यायत्वं ज्ञेयम् । इति दीपिकायाम् ।
१००० [४९६]

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