Book Title: Avashyak Niryukti Part 02
Author(s): Punyakirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashan
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आवश्यक- अद्धा पञ्चक्खाणं जं, तं कालप्पमाणछेएण । पुरिमड्डपोरिसीए, मुहुत्तमासद्धमासेहिं ।।१५७८।।
आ.नि. नियुक्तिः स्पष्टा ।।१५७८।। एतन्निगमयन्नाह -
प्रत्याख्यानाश्रीतिलकाचार्य- *
ध्ययनम् ___ भणियं दसविहमेयं, पञ्चक्खाणं गुरूवएसेणं । कयपञ्चक्खाणविहिं, इत्तो वुच्छं समासेणं ।।१५७९।।
भावप्रत्याख्यानम्। लघुवृत्तिः स्पष्टा ।।१५७९।। आह परः -
गाथा-१५७८आह जह जीवघाए, पञ्चक्खाए न कारए अन्नं । भंगभयासणदाणे, धुव कारवणंति नणु दोसो ।।१५८०।।
१५८२ १०८४ यथा जीवघाते प्रत्याख्याते अन्यं जीवघातं न कारयति, भङ्गभयात् । एवं कृतप्रत्याख्यानस्यान्येषामानीयाऽशनदाने ध्रुवं *
भोजनकारापणमिति प्रत्याख्यानभङ्गदोषः ।।१५८०।। अतः -
नो कयपञ्चक्खाणो, आयरियाईण दिज्ज असणाई । न य विरईपालणाओ, वेयावचं पहाणयरं ।।१५८१।। स्पष्टा ।।१५८१।। अथ गुरुराह -
१०८४ नो तिविहं तिविहेणं, पञ्चक्खइ अन्नदाणकारवणं । सुद्धस्स तओ मुणिणो, न होइ तब्भंगहेउत्ति ।।१५८२।। न त्रिविधं त्रिविधेन प्रत्याख्याति । तन्नाऽन्यस्मै अन्नादेर्दानं भोजनकारापणं च प्रत्याख्यानभङ्गहेतु ।।१५८२।। किञ्च -
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