Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 14
________________ प्रस्तावना प्राचीन प्रतियोंका परिचय आत्मानुशासनका प्रस्तुत संस्करण निम्न प्रतियोंके आधारसे किया गया है- "1 ज - यह प्रति श्री आदिनाथ दि. जैन शेतवाल मंदिर शोलापुरकी है । इस प्रतिकी लम्बाई ११॥ इंच और चौडाई ५।। इंच है, पत्रसंख्या १-६२ है । प्रत्येक पत्रपर एक ओर ११ पंक्तियां और प्रतिपंक्ति में लगभग ३७-३९ अक्षर हैं । ग्रन्थका प्रारम्भ ।। ६० ।। ओं नमः सिद्धेभ्यः ।। " इस मंगलवाक्यको लिखकर किया गया है | ग्रन्थके अन्तमें "।। इति श्री पंडितप्रभाचन्द्रविरचितात्मानुशासन टीका समाप्ता ॥ " इस अन्तिम पुष्पिकावाक्यको लिखकर लेखकने निम्न प्रशस्ति लिखी है " ।। संवत् १८३४ का वर्षे कार्तिगमासे कृष्णपक्षे ९ नवमी सनिवारे लिषावितं पंडितजी श्री अरा ( णं ) दराम जी पठार्थ ( पठनार्थं ) सिष्य पंडित जी श्री श्री री ( खब ) चंद जी । दिषतं म्हात्मा गोबिंदरामेण ॥श्लोक । यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा तादृशं लिषतं मया । यदि सुद्धमसुद्धं वा मम दोशो न दीयते || १ || लिषाप्यतं जयपुरमध्ये | श्री ।" इस लेखक प्रशस्तिके अनुसार उसका लेखनकाल कार्तिक कृष्ण ९ शनिवार संवत् १८३४ हैं । प्रति सुवाच्य व सुन्दर लिखी गई है । इसमें कहीं कहीं पर नीचे, ऊपर या हांशियेपर अर्थबोधक टिप्पण भी दिये गये हैं । इसमें प्राय: 'र्ग' के लिये 'ग्रे', 'क्ष्य' के लिये 'ष्य' और 'च्छ' के लिये 'छ' लिखा गया है । 1 1 स- यह प्रति भाण्डारेकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिटयूट पूनाकी है । पत्रको लम्बाई-चौडाई १२x६ इंच है । पत्रसंख्या १-५२ है । इसमें प्रत्येक पत्रकी एक ओर १३ पंक्तियां और प्रत्येक पंक्तिमें लगभग ३५-४० अक्षर हैं । लिपि साधारण है । कहीं कहीं पर काटा भी गया है। और हांशियेपर लिखा गया है। इसमें 'ओ' के स्थान में 'उ' तथा 'च्छ' और 'त्थ' के लिये समान रूपसे 'त्थ' लिखा गया है । एकारकी मात्रा ) के लिये पीछे खड़ी लकीर (T) का भी उपयोग किया गया है ।

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