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__ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतकांश, तम ताजा अनुभव राजा संगीजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ११ ॥
स्तवन चोथु।
॥ राग माढ ॥ थारी लरे सरण जगनाथ आज मुज तारो तो सही ॥ आंचली॥ क्रोध मानकी तप्त मिटावो, गरो तो सही । मेरे प्रजुजी गरो तो सही । ए दिव्य ज्ञान जग नाण, हृदयमें धारो तो सही ॥ थारी० ॥१॥ मिथ्या रान कपट जमता संग तारो तो सही। ए सम्यग दर्शन सरल, आनंदरस कारो तो सही॥थारी० ॥॥ तृषणा रांग लांमकी जा वारो तो सही। ए चरण शरण जय हरण, आनंदसे उगारो तो सही ॥ थारी० ॥३॥ अष्ट करम दल उदनट वैरी मारो तो सही । ए
छादश विध तव अघम गजार उधारो तो सही ॥ । थारी० ॥४॥ युगलक धर्म निवारण तारण हारो - तो सही । ए जगत उधारण रिखव जिनेश्वर · प्यारो तो सही ॥ थारी० ॥५॥ विमलाचल मंगन
अघ खमन सारो तो सही। ए आतमराम आनंदरस चाख उगारो तो सही ॥ थारी० ॥६॥