Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 11
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 12, अंक - 4, अक्टूबर 2000, 9 - 16 हड़प्पा की मोहरों पर जैन- पुराण और आचरण के सन्दर्भ - रमेश जैन* सर्वप्रथम यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हड़प्पा की लिपि अभी तक बोधगम्य स्वीकार नहीं की गई है। वर्तमान लेखक ने अपनी ओर से पूर्णत: वैज्ञानिक पद्धति का अनुकरण करते हुए वाचन के प्रयास किये हैं और अपनी अवधारणा के अनुरूप हड़प्पा लिपि की चारित्रिक विशेषताएँ गिनाते हुए उसके अनुरूप विकसित की गई वाचन - पद्धति का ब्यौरा भी विभिन्न प्रकाशित एवं प्रसारित शोध पत्रों में प्रस्तुत किया है। उन्हीं वाचन - प्रयासों में से चुने गए जैन पौराणिक व आचरण विषयक कुछ उदाहरण यहाँ उपलब्ध किये जा रहे हैं। उन उदाहरणों से संबंधित हड़प्पा की मोहरों के चिह्नों और उन पर उकेरे गये चित्रों के विवरण भी इरावती महादेवन के ग्रन्थ से प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इसी प्रकार यहाँ यह जोड़ देना उपयोगी होगा कि वाचन प्रयासों से उपलब्ध सभी शब्दों के अर्थ सर मोनियर - विलियम्स के संस्कृत अंग्रेजी शब्दकोष पर आधारित हैं। हड़प्पा के लेखन की मूल प्रवृत्तियां वर्ष 1986 - 87 के हड़प्पा की लिपि के वाचन - प्रयासों के प्रारम्भिक दिनों में जैन विषयों की उपस्थिति के संकेत मुझे चौंकाने वाले लगते थे। फिर हड़प्पा लिपि के अध्ययन संबंधी अपने शोध (शोध उपाधि के लिये) कार्य में सतत् उनकी पुष्टि होती दिखती रही। भाषा और लिपि का अध्ययन ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता गया, हड़प्पा संस्कृति के विषय में उसके विशुद्ध भारतीय, आंचलिक होने का विश्वास पक्का होता गया। और अपने सहज सरल स्वरूप में संस्कृत की सहोदरा और प्राकृत के समान भारतीय अंचलों की धूल माटी में सनी भाषा उजागर होती गई। उसी के साथ मोटे तौर पर लिखावट में निहित साहित्य श्रमणिक स्वभाव का होना सुनिश्चित होता गया। विषय को सूत्र रूप में प्रस्तुत करना इस लिखावट की विशेषता है। काव्यमयी भाषा में उकेरे गये शब्द अपनी प्रकृति से ही विशुद्ध सरल स्वभाव के हैं। हर शब्द अपने मौलिक स्वरूप में, सम्पूर्ण बहुआयामी विविधता के साथ, लेखक के सन्देश को जहाँ एक ओर अग्रसर करता है, वहीं दूसरी ओर वह अपने भावात्मक इतिहास का अहसास करा देता है और इन शब्दों में पिरोया हुआ मिलता है, एक श्रमणिक समाज का वृहत्तर ताना बाना। इस अध्ययन से एक ओर जहाँ हड़प्पा लिपि का ध्वन्यात्मक होना तय होता है वहीं हड़प्पा के चिह्न प्रतीकात्मकता और चित्रात्मकता के मूलगुणों को भी संजोये हुए हैं। इससे वाचन प्रयासों का मार्ग प्रशस्त होता है एवं वाचन प्रयास के लिये प्रामाणिकता का आधार भी तैयार होता है। हडप्पा संस्कृति : मानव सभ्यता का प्राचीनतम झलाघर इस बीच हड़प्पा के समान प्राचीन संस्कृति में जैन पौराणिक सन्दर्भो की समीक्षा करने के लिये तैयार होने में, कुछ पुस्तकों के अध्ययन ने मेरी बड़ी मदद की। इनमें से दो लेखक और उनका साहित्य विशेष उल्लेखनीय है। प्रथम स्थान पर 19वीं सदी के मध्य में ई. पोकॉक नामक अंग्रेज विद्वान् द्वारा लिखा गया ग्रंथ है, भारत की यूनान * वास्तुकला एवं नगर नियोजन विभाग, मौलाना आजाद प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, भोपाल-462007 (म.प्र.) AL

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